Friday, 31 January 2025

जू के इस टाइगर को देख हक्के-बक्के रह गए टूरिस्ट, बोले- ये क्या बला है

Ridiculous stunt by a Chinese zoo: चीन के एक चिड़ियाघर (Chinese zoo) ने पर्यटकों को ध्यान खींचने के लिए एक बेहद अजीबोगरीब तरीका अपनाया है. ताइज़हौ, जिआंगसु प्रांत स्थित इस चिड़ियाघर ने अपने दो चाउ चाउ (Chow Chow) नस्ल के कुत्तों (dog) को नारंगी और काले रंग से रंगकर बाघ (tiger) बनाने की कोशिश की. जब इस अतरंगी स्टंट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो यूज़र्स ने चिड़ियाघर की जमकर आलोचना की.  

"हमारे बाघ बहुत बड़े और खतरनाक हैं"  

यह वीडियो चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Douyin (TikTok का चीनी वर्जन) पर लाइव स्ट्रीम किया गया था, जिसमें चिड़ियाघर ने दावा किया कि उनके बाघ बहुत बड़े और डरावने हैं, लेकिन वीडियो में दिख रहे "बाघ" असल में रंगे हुए कुत्ते निकले. जैसे ही लोगों ने इस धोखे को पहचाना, सोशल मीडिया पर आलोचना की बाढ़ आ गई. 

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"टाइगर डॉग" बनाने की सफाई

विवाद बढ़ने के बाद, चिड़ियाघर ने लोकल मीडिया से बात करते हुए स्वीकार किया कि यह महज एक "मार्केटिंग ट्रिक" थी. उन्होंने कहा कि इससे कुत्तों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा और यह सिर्फ लोगों को आकर्षित करने के लिए किया गया था. चिड़ियाघर ने सफाई दी कि, "यह एक देशी चाउ चाउ था, जिसे 'टाइगर डॉग' में बदला गया था, असली बाघ नहीं है." 

पहले भी पांडा कुत्ते बना चुका है ये चिड़ियाघर 

यह पहली बार नहीं है जब इस चिड़ियाघर ने इस तरह की हरकत की हो. पिछले साल, इसी चिड़ियाघर ने चाउ चाउ कुत्तों (Chow Chow dogs) को काले और सफेद रंग में रंगकर उन्हें "पांडा डॉग" (Xiong Mao Quan) के रूप में पेश किया था. उन्होंने इस आकर्षण को मई दिवस अवकाश (May Day Holiday) के दौरान प्रमोट किया था ताकि अधिक संख्या में पर्यटक आएं.

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यूज़र्स ने इस बार के स्टंट पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "पहले भी यह पांडा के साथ हुआ था, अब बाघ के साथ, आखिर वे कब सीखेंगे?" एक अन्य यूजर ने लिखा,"इतने सारे चिड़ियाघर चाउ चाउ को पांडा या बाघ बना रहे हैं. यह धोखा बंद होना चाहिए." दूसरे यूजर ने लिखा, "पर्यटकों ने अपना पैसा वापस मांगा क्योंकि उन्हें असली जानवर देखने की उम्मीद थी."  

क्या कुत्तों को रंगना सही है?  

चिड़ियाघर के इस कदम को कई लोगों ने अनैतिक और गैर-जिम्मेदाराना बताया. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा, "चूंकि हमारे पास असली पांडा नहीं हैं, इसलिए हमने यह किया." चिड़ियाघर का कहना था कि "लोग भी अपने बाल रंगते हैं और अगर कुत्तों के लंबे बाल हों तो उन पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जा सकता है." हालांकि, पशु प्रेमी इस तर्क से सहमत नहीं हैं और इसे जानवरों के साथ अन्याय मान रहे हैं. 

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क्या कहती है जनता?

यह मामला चीन ही नहीं, दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया है. लोगों का कहना है कि चिड़ियाघरों को जानवरों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और इस तरह की भ्रामक चालों से बचना चाहिए.

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Thursday, 30 January 2025

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक मामलों में अब आएगी तेजी

Big Decision Of Supreme Court: देशभर के हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है. हाईकोर्ट अब लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए एड-हॉक जजों की नियुक्ति कर सकते हैं. ये एड-हॉक जज बेंच में नियमित जजों के साथ बैठेंगे. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) संजीव खन्ना,  जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कहा कि प्रत्येक हाईकोर्ट दो से पांच एड-हॉक जजों की नियुक्ति कर सकता है, लेकिन किसी भी मामले में, यह संख्या स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "प्रत्येक उच्च न्यायालय अनुच्छेद 224ए का सहारा लेकर एड हॉक जजों की नियुक्ति करेगा." इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि ऐसी नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया के ज्ञापन को लागू किया जाएगा और उसका सहारा लिया जाएगा. यदि आवश्यक हो, तो यह पीठ आगे के निर्देशों के लिए फिर से सुनवाई करेगी. यदि आवश्यक हो, तो पक्षकार फिर से अर्जी दाखिल कर सकते हैं. 

2021 में दी थी हरी झंडी

अदालत ने इससे पहले अप्रैल 2021 के फैसले में एड हॉक जजों की नियुक्ति के लिए उल्लिखित कुछ शर्तों को संशोधित करने की इच्छा व्यक्त की थी. दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने अप्रैल 2021 के फैसले में पहली बार उच्च न्यायालयों में एड-हॉक जजों की नियुक्ति को हरी झंडी दी थी. हालांकि, उसी फैसले में न्यायालय ने नियमित जजों की नियुक्ति करने के बजाय एड-हॉक आधार पर जजों की नियुक्ति करने के खिलाफ चेतावनी भी दी थी.पीठ ने कहा था कि एड-हॉक जजों को नियमित जजों के नियमित विकल्प के रूप में नहीं देखा जा सकता है. इसलिए, न्यायालय ने एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए कुछ ट्रिगर पॉइंट निर्धारित किए थे. इनमें से एक यह था कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति तभी की जा सकती है, जब रिक्तियां स्वीकृत संख्या के 20 प्रतिशत से अधिक हों. अन्य  बिंदुओं में ऐसी स्थितियां शामिल हैं, जैसे कि जब किसी विशेष श्रेणी के मामले पांच या अधिक सालों से लंबित हों या जब 10 प्रतिशत से अधिक बैकलॉग पांच साल या उससे अधिक समय से लंबित हो या जब नए मामलों की स्थापना की दर निपटान की दर से अधिक हो, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस सीमा में ढील दे दी है.



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Wednesday, 29 January 2025

केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने बोकारो स्टील प्लांट के लिए मेगा विस्तार योजना का किया अनावरण

केंद्रीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने सोमवार और मंगलवार को बोकारो स्टील प्लांट का दौरा किया, जहां उन्होंने उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी विस्तार योजना का अनावरण किया. 20,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ, ब्राउनफील्ड विस्तार का लक्ष्य हॉट मेटल उत्पादन को मौजूदा 5.25 MTPA से बढ़ाकर 7.55 MTPA करना है, जिससे स्टील सेक्टर में भारत के आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ने की गति को मजबूती मिलेगी.

बोकारो स्टील प्लांट, जिसने 1965 में अपनी नींव रखी और 1972 में अपना पहला ब्लास्ट फर्नेस संचालन शुरू किया, की शुरुआत में क्षमता 1.7 MTPA थी. इन वर्षों में, यह बढ़कर 5.25 MTPA हो गई है और मंत्री ने कहा कि "प्लांट अब एक नए 4500 क्यूबिक मीटर ब्लास्ट फर्नेस, एक थिन स्लैब कास्टिंग और डायरेक्ट रोलिंग सुविधा, एक कैल्सिनिंग प्लांट, एक स्टैम्प-चार्ज कोक ओवन बैटरी और एक सिंटर प्लांट विस्तार के साथ बड़े पैमाने पर ओवरहाल के लिए तैयार है".

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परियोजना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, कुमारस्वामी ने कहा, "यह विस्तार इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण है और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2030 तक 300 MTPA इस्पात उद्योग के दृष्टिकोण के अनुरूप है. पूंजी और तकनीकी प्रगति के निवेश से इस्पात क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और भारत की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा."

विस्तार के मूल में रोजगार सृजन और डीकार्बोनाइजेशन

उत्पादन बढ़ाने के अलावा, विस्तार योजना से 2,500 स्थायी नौकरियां और 10,000 अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी, जिससे क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा मिलेगा.

कुमारस्वामी ने डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों पर भी जोर दिया और कहा कि "बोकारो स्टील प्लांट 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 2.67 टन प्रति टन कच्चे इस्पात से घटाकर 2.2 टन से कम करने के लिए प्रतिबद्ध है." संयंत्र अपनी नवीकरणीय ऊर्जा पहलों को आगे बढ़ा रहा है, जिसमें शामिल हैं:

- 30 मेगावाट फ्लोटिंग सौर ऊर्जा उत्पादन

- 20 मेगावाट भूमि-आधारित सौर ऊर्जा

- पीपीए के माध्यम से SECI से प्राप्त 100 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा

कुमारस्वामी ने कहा, "ये कदम ऊर्जा खपत को अनुकूलित करते हुए क्षमता उपयोग को अधिकतम करने पर हमारे फोकस को दर्शाते हैं, जिससे भारत के इस्पात उद्योग के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित होता है."

घरेलू कोयला आपूर्ति को मजबूत करना: तसरा कोयला खदान और चासनल्ला वाशरी का दौरा

अपनी यात्रा के हिस्से के रूप में, एच.डी. कुमारस्वामी ने तसरा कोयला खदान का निरीक्षण किया, जो एक प्रमुख परियोजना है जिसका उद्देश्य आयातित कोकिंग कोयले पर भारत की निर्भरता को कम करना है. सितंबर 2025 में चालू होने के बाद, खदान 3.5 MTPA घरेलू कोकिंग कोयले का उत्पादन करेगी, जिससे इस्पात उत्पादन के लिए कच्चे माल की सुरक्षा मजबूत होगी.

उन्होंने चासनाला वाशरी का भी दौरा किया, जिसकी स्थापित क्षमता 2 एमटीपीए है, जिसे कोयले में राख की मात्रा को 28% से घटाकर 17% करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे इस्पात उत्पादन में बेहतर दक्षता सुनिश्चित होगी.

कुमारस्वामी ने कहा, “तासरा और चासनाला का विकास भारत को कोयला आपूर्ति में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो विकसित भारत 2047 के विजन के अनुरूप है.”

इस यात्रा के दौरान उनके साथ इस्पात और भारी उद्योग राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा  और सेल अध्यक्ष अमरेंदु प्रकाश भी थे, जिन्होंने उन्हें संयंत्र में विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति के बारे में जानकारी दी.



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चीन का भोंपू निकला DeepSeek? जब NDTV ने किया लाइव रियलिटी टेस्ट, VIDEO में देखिए

चीन के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चैटबॉट मॉडल डीपसीक (DeepSeek) की एंट्री से टेक वर्ल्ड में खलबली मची हुई है. बेहद लो-कॉस्टिंग वाले इस AI चैटबॉट को बाकी आर्टिफिशियल मॉडल का मुकाबला  ChatGPT, Gemini, Claude AI और मेटा AI जैसे प्लेटफॉर्म से हो रहा है.  दुनियाभर में इस AI मॉडल का फ्री में इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे में सवाल है कि DeepSeek AI में ऐसा क्या खास है, जो दूसरे चैटबॉट नहीं कर पाए. DeepSeek की खूबियां समझने के लिए ही NDTV ने चीन के इस AI मॉडल का लाइव रियलिटी टेस्ट किया है.

NDTV ने OpenAI के चैटबॉट ChatGPT और DeepSeek के आर्टिफिशियल प्लेटफॉर्म पर जाकर ये समझने की कोशिश की है कि इन दोनों के फीचर्स में क्या बुनियादी फर्क है? दोनों में से कौन सा कंज्यूमर के लिए फायदेमंद हैं. हमारे रियालिटी टेस्ट में एक बात निकलकर आई कि डीपसीक चीन सरकार का भोंपू ज्यादा है.

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पहले डीपसीक को जानिए?
-डीपसीक  V3 एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट है. लिआंग वेनफेंग की स्टार्टअप कंपनी ने इसे तैयार किया है. 
-वेनफेंग AI और क्वांटिटेटिव फाइनेंस में बैकग्राउंड वाले इंजीनियर हैं.
-इस कंपनी को जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया था. कंपनी का हेडक्वॉर्टर हांगचो में है. 
-डीपसीक के लि वेनफेंग ने हेज फंड के जरिए निवेशक जुटाए थे. उन्होंने अमेरिका की सबसे बड़ी चिप मेकिंग कंपनी एनवीडिया ए100 चिप्स के ज़रिए एक स्टोर बनाया था. 
-कहा जा रहा है कि करीब 50 हजार चिप्स के कलेक्शन से उन्होंने डीपसीक को लॉन्च किया था. 


LIVE रियालिटी टेस्ट में क्या निकला?
-चीन के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल डीपसीक और अमेरिका के चैटGPT मॉडल में कौन सबसे बेहतर है. इसे समझने के लिए सबसे पहले हमने ChatGPT के प्लेटफॉर्म पर रोमन में एक सवाल पूछा.
-ये सवाल था, "क्या डोनाल्ड ट्रंप का दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनना अमेरिका और दुनिया के हित में है?"

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ChatGPT ने क्या दिया जवाब?
-ChatGPT ने रोमन में पूछे गए सवाल का जवाब भी रोमन में दिया- "डोनाल्ड ट्रंप का दोबारा प्रेसिडेंट बनना एक कंट्रोवर्सियल और कॉम्प्लेक्स सवाल है.  इसके जवाब में कई फैक्टर्स को कंसिडर करना जरूरी है." इसके बाद ChatGPT ने बताया कि ट्रंप के प्रेसिडेंट बनने से अमेरिका पर क्या असर पड़ेगा. दुनिया के लिए भी इसकी क्या अहमियत है.

डीपसीक ने क्या दिया जवाब?
-चीन के डीपसीक से भी यही सवाल रोमन में पूछा गया. हैरान करने वाली बात है कि DeepSeek ने रोमन में पूछे गए सवाल का जवाब हिंदी में दिया.
-DeepSeek ने कहा- "ये प्रश्न विचार-विमर्श और विभिन्न दृष्टिकोणों में निर्भर करता है. डोनाल्ड ट्रंप के फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के प्रभाव को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है. कुछ लोग मानते हैं कि उनकी नीतिया जैसे कि अमेरिका को प्राथमिकता देना व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार अमेरिका और दुनिया के लिए फायदेमंद हो सकता है. वहीं, उनकी विदेश नीतियां और आंतरिक नीतियां वैश्विक स्तर पर अस्थिरता पैदा कर सकती हैं.

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डीपसीक चीन सरकार का भोंपू कैसे?
-ChatGPT पर हमने दूसरा सवाल बीजिंग में 1989 में हुए स्टूडेंट मूवमेंट को लेकर सवाल किया था. ये सवाल भी रोमन में था. ChatGPT ने इसका लंबा सा जवाब दिया, लेकिन रोमन में ही.
-बीजिंग में 1979 में हुए स्टूडेंट मूवमेंट को लेकर यही सवाल हमने DeepSeek प्लेटफॉर्म पर भी पूछा. हमने पूछा- Tiananmen square per kya huya tha 1989 main?
-DeepSeek ने इसका जवाब अब इंग्लिश में दिया. उसने लिखा- Sorry, that's beyond my current scope. let's talk about something else. (माफ करें, यह मेरे वर्तमान दायरे से बाहर है. कुछ और बात करते हैं.) डीपसीक के इस जवाब से साफ है कि ये चीन की बोली बोलने वाला AI मॉडल है.

डीपसीक ऐप को कहा करें डाउनलोड?
चीन के डीपसीक ऐप को कंपनी की वेबसाइट से और एपल के एप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. अमेरिका और UK में एपल ऐप स्टोर से डाउनलोडिंग के मामले में डीपसीक टॉप पर है. डाउनलोडिंग के मामले में इसने ओपन AI के ChatGPT को पीछे छोड़ दिया है.

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Tuesday, 28 January 2025

अदाणी समूह अगले 5 साल में ओडिशा में करेगा 2.3 लाख करोड़ रुपये का निवेश

अदाणी समूह ने मंगलवार को ओडिशा में बिजली, सीमेंट, औद्योगिक पार्क, एल्युमीनियम और शहर गैस विस्तार में अगले पांच साल में 2.3 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई. समूह के एक बयान के अनुसार, उसने राज्य की निवेशक बैठक ‘उत्कर्ष ओडिशा-मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव' 2025 के दौरान निवेश की प्रतिबद्धता जताई.

बयान के अनुसार, अदाणी पोर्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड (एपीएसईजेड) के प्रबंध निदेशक करण अदाणी ने राज्य के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी से मुलाकात की और अगले पांच वर्षों में ओडिशा में निवेश के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

बयान में कहा गया, “अदाणी समूह ने अगले पांच साल में बिजली, सीमेंट, औद्योगिक पार्क, एल्युमीनियम, शहर गैस आदि क्षेत्रों में 2.3 लाख करोड़ रुपये निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है.” हालांकि, समूह ने और विवरण नहीं दिया.

अतिरिक्त मुख्य सचिव (उद्योग) हेमंत शर्मा ने बताया, “सम्मेलन में किसी भी समूह द्वारा की गई यह सबसे बड़ी निवेश प्रतिबद्धता है.” उन्होंने कहा कि सम्मेलन के पहले दिन अबतक 4.5 लाख करोड़ रुपये के 54 समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं.

इसके अलावा, उत्कर्ष ओडिशा के अवसर पर ओडिशा में अदाणी टोटल गैस लिमिटेड (एटीजीएल) की छह परियोजनाओं को चालू किया गया.



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Monday, 27 January 2025

स्थापना के 75 साल पूरे होने पर सुप्रीम कोर्ट मनाएगा डायमंड जुबली, एक साथ बैठेंगे सभी 33 जज

अपनी स्थापना के 75 साल पूरे होने पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार 28 जनवरी को डायमंड जुबली मनाने की तैयारी की गई है..इसके तहत मंगलवार की शाम 3.30 बजे CJI संजीव खन्ना की अगुवाई में सभी 33 जज एक साथ बैठेंगे.. CJI कोर्ट यानी कोर्टरूम नंबर 1 में आयोजित इस सेरोमैनियल बेंच की लाइव स्ट्रीमिंग भी होगी.

दरअसल 28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 75 साल पूरे हो रहे हैं. 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी.. उस समय संविधान के मुताबिक CJI और सात जजों की क्षमता तय की गई थी.  इस दिन सभी जज एक साथ संसद की पुरानी इमारत में बैठे थे.

इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट की इमारत की नींव रखी और 1958 में सुप्रीम कोर्ट ने इस इमारत में काम शुरू किया. अब CJI संजीव खन्ना की अगुवाई में इसी गोल्डन जुबली को मनाने के लिए मंगलवार शाम 3.30 बजे CJI खन्ना और शेष 32 जज एक साथ सैरोमैमियल बेंच में बैठेंगे.

सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कुल जजों की क्षमता 34 है. सुप्रीम कोर्ट सूत्रों के मुताबिक इसी तरह की सैरोमैनियल बेंच सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 50 साल पूरा होने पर भी बैठी थी.. हालांकि इस बार खास बात ये है कि इस बेंच की लाइव स्ट्रीमिंग भी होगी .



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Sunday, 26 January 2025

राष्ट्रपति भवन में इंडोनेशियाई मंत्रियों ने गाया 'कुछ कुछ होता है' गाना, काजोल ने इस तरह किया रिएक्ट

भारत के 76वें गणतंत्र दिवस के खास मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो को आमंत्रित किया गया. इस दौरान बीती शनिवार रात राष्ट्रपति भवन में आयोजित रात्रिभोज में इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल ने बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान की फिल्म 'कुछ कुछ होता है' का गाना गाकर सबका दिल जीत लिया. सोशल मीडिया पर यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है, जिस पर यूजर्स तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देते हुए जी भर कर अपना प्यार लुटा रहे हैं. बॉलीवुड अभिनेत्री काजोल ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी. बता दें कि, उदित नारायण और अलका याग्निक द्वारा गाये गए इस गाने को काजोल, रानी मुखर्जी और शाहरुख खान पर फिल्माया गया था.

यहां देखें वीडियो

वीडियो ने जीता दिल

सोशल मीडिया पर यह वीडियो ANI द्वारा शेयर किया गया है. 1 मिनट 16 सेकंड के इस वीडियो को अब तक खूब देखा और शेयर किया जा चुका है. वीडियो में देखा जा सकता है कि, इंडोनेशियाई मंत्री पारंपरिक 'सोंगकोक' टोपी और सूट पहनकर इस गाने को गाते नजर आ रहे हैं. उनके इस खास अंदाज ने भारतीयों के दिलों को छू लिया. इंटरनेट पर वायरल हो रहे इस खास पल के वीडियो को देखने के बाद यूजर्स इसे भारतीय संस्कृति और इंडोनेशियाई संबंधों का खूबसूरत संगम बता रहे हैं.

काजोल ने दी प्रतिक्रिया

जैसा कि सभी जानते ही हैं कि, साल 1998 में आई फिल्म 'कुछ कुछ होता है' में शाहरुख खान और रानी मुखर्जी के साथ काजोल ने भी अहम भूमिका निभाई थी. राष्ट्रपति भवन में इंडोनेशियाई मेहमानों द्वारा गाये गए इस गाने के वायरल वीडियो पर बॉलीवुड अभिनेत्री काजोल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. काजोल ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा है, 'बॉलीवुड की एकता की ताकत फिर से चमक उठी. इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल का 'कुछ कुछ होता है' गाना दिल को छू लेने वाला है. वास्तव में बहुत सम्मानित महसूस कर रही हूं.'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात

जानकारी के मुताबिक, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुबियांतो ने शनिवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इस दौरान राजनीतिक, रक्षा और सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा हुई. बता दें कि, गुरुवार रात राष्ट्रपति सुबियांतो दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे, जहां विदेश राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा ने उनका स्वागत किया.

ये भी पढ़ें:-तस्वीर में छिपे चेहरे को 10 सेकंड में ढूंढने का है चैलेंज



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Saturday, 25 January 2025

नेहरू जैकेट और टोपी में दिख रही यह बच्ची है बॉलीवुड की 'पहली सुपरस्टार', सबसे ज्यादा लेती थी फीस, कम उम्र में कहा दुनिया को अलविदा, पहचाना ?

देश के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत जवाहर लाल नेहरू  और बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू के लुक में दिख रही यह बच्ची बॉलीवुड की सुपरस्टार है. फोटो में बेहरू जैकेट में यह बच्ची बेहद प्यारी दिख रही है. यह बच्ची बचपन में बतौर चाइल्ड एक्टर कई फिल्मों में बड़े स्टार्स के साथ नजर आई. बड़ी होने के बाद यह कई हिट फिल्मों में बतौर हीरोइन दिखी. इसके दुनिया भर में लाखों करोड़ों फैंस थे. इसके नाम से फिल्में चलती थीं और सुपरस्टार कहलाई. हालांकि अब यह बच्ची इस दुनिया में नहीं, लेकिन आज भी अपने काम के जरिए फैंस के दिलों में जिंदा है. इसकी एक बेटी टॉप एक्ट्रेस बन चुकी है तो वहीं दूसरी बेटी भी बॉलीवुड में डेब्यू कर चुकी है. 

अगर आप इस बच्ची को अब तक नहीं पहचान पाए हैं तो हम आपको बता दें यह लोकप्रिय एक्ट्रेस श्रीदेवी के बचपन की फोटो है. श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त 1963 को हुआ था. वह तमिल, मलयालम, तेल्गु, कन्नड़ और हिन्दी फिल्मों में नजर आईं. वह भारतीय सिनेमा की पहली "महिला सुपरस्टार" कही जाती हैं. श्रीदेवी को उनके काम के लिए पांच फिल्मफेयर पुरस्कार मिले. 1980 से 1990 के दशक में श्रीदेवी सबसे अधिक वेतन प्राप्त करने वाली अभिनेत्रयों में शामिल थीं. 2013 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया.

 बता दें कि 1985 में  फिल्म जूली से उन्होंने हिन्दी सिनेमा में बतौर बाल कलाकार फिल्मों में डेब्यू किया. उनकी पहली फिल्म मून्द्र्हु मुदिछु थी जो तमिल में थी. श्रीदेवी ने 1985 में फिल्म सोलहवां सावन से डेब्यू किया. हालांकि पहचान 1983 में आई फिल्म हिम्मतवाला से मिली. एक के बाद एक सुपरहिट महिला प्रधान फिल्मों में वह नजर आईं. सदमा, नागिन,निगाहें, मिस्टर इन्डिया, चालबाज़, लम्हे, ख़ुदागवाह और जुदाई उनकी बेहतरीन फिल्में हैं. श्रीदेवी ने 63 हिंदी, 62 तेलुगु, 58 तमिल, 21

मलयालम तथा कुछ कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया. उनकी बेटी जाह्ननी कपूर और खुशी कपूर हैं. जाह्नवी बड़ी स्टार बन चुकी हैं, जबकि खुशी इसी साल डेब्यू कर चुकी हैं.  24 फरवरी 2018 को दुबई में श्रीदेवी का निधन हो गया. 
 



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Friday, 24 January 2025

वित्त मंत्री ने पारंपरिक हलवा समारोह में भाग लिया, अंतिम दौर में पहुंची बजट की तैयारी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को पारंपरिक हलवा समारोह में भाग लिया. इसके साथ वित्त वर्ष 2025-26 के बजट दस्तावेज को अंतिम रूप देने का काम शुरू हो गया है. आम बजट एक फरवरी को लोकसभा में पेश किया जाएगा. हलवा समारोह को बजट दस्तावेज को अंतिम रूप देने का आखिरी चरण माना जाता है. यह हर साल होने वाला समारोह है, जिसमें हलवा तैयार किया जाता है और बजट की तैयारी में शामिल रहे वित्त मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को परोसा जाता है.

यह समारोह दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक के ‘बेसमेंट' में आयोजित किया जाता है. यहीं पर प्रिटिंग प्रेस है. वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लॉक में ही स्थित है. सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्री ने हलवा समारोह में भाग लिया, बजट प्रेस का दौरा किया और संबंधित अधिकारियों को शुभकामनाएं दीं.

माना जा रहा है कि पिछले चार पूर्ण आम बजट और एक अंतरिम बजट की तरह इस बार भी आम बजट 2025-26 को कागज रहित रूप में पेश किया जाएगा.

वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी और वित्त सचिव तुहिन कांत पांडेय के अलावा आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी समारोह में मौजूद थे. वार्षिक वित्तीय विवरण ( जिसे बजट के रूप में जाना जाता है) अनुदान मांगें, वित्त विधेयक आदि सहित केंद्रीय बजट के सभी दस्तावेज ‘केंद्रीय बजट मोबाइल ऐप' पर उपलब्ध होंगे.

दरअसल ‘हलवा' समारोह केंद्र सरकार के बजट की तैयारी में शामिल वित्त मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को ‘अलग रखने' की प्रक्रिया है. यानी बाहर की दुनिया से वे पूरी तरह अलग-थलग होते हैं.

ये अधिकारी और कर्मचारी संसद में बजट पेश होने तक नॉर्थ ब्लॉक के ‘बेसमेंट' में ही रहते हैं. जहां पूरी गोपनीयता रखी जाती है. वित्त मंत्री के लोकसभा में अपना बजट भाषण पूरा करने के बाद ही वे बाहर आते हैं.



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Thursday, 23 January 2025

सैफ को कैसे लग सकती है 15 हजार करोड़ रुपये की चपत? जान लीजिए शत्रु संपत्ति क्या होता है

Saif Ali Khan New Problem:  सैफ अली खान को 15 हज़ार करोड़ की चपत लग सकती है. ये संपत्ति भोपाल राज परिवार की रही है और इस पर अब पटौदी परिवार के वारिस और अभिनेता सैफ़ अली ख़ान दावा करते हैं, लेकिन क़ानून ऐसा है कि उसे सरकार द्वारा बेचे जाने का ख़तरा मंडरा रहा है. जिस संपत्ति पर सैफ़ अली ख़ान दावा कर रहे हैं, उसे शत्रु संपत्ति क्यों कहा जा रहा है और ये विवाद है क्या... इसे जानने से पहले हमें थोड़ा इतिहास में जाना होगा... 

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भोपाल के आख़िरी नवाब थे हमीदुल्लाह ख़ान, जो मोहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी थे. अलग पाकिस्तान देश बनाने के जिन्ना के अभियान में उन्होंने भी काफ़ी साथ निभाया था. ऐतिहासिक दस्तावेज़ कहते हैं कि नवाब हमीदुल्लाह ने पाकिस्तान में शामिल होने का मन बना लिया था. उस समय भोपाल ब्रिटिश भारत की दूसरी सबसे बड़ी इस्लामिक रियासत थी, लेकिन चारों ओर ज़मीन से घिरे यानी Land locked भोपाल को लेकर उनकी योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पाईं. जिन्ना ने भी भाव नहीं दिया और वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी साथ नहीं दिया. नवाब हमीदुल्लाह ख़ान का 1960 में निधन हुआ. उनकी तीन बेटियां थीं. सबसे बड़ी आबिदा सुल्तान विभाजन के बाद 1950 में पाकिस्तान चली गईं. वहां की नागरिक बन गईं. 

सैफ क्यों कर रहे संपत्ति पर दावा

उनकी दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान भारत में ही रहीं. पिता की संपत्ति की वारिस बनीं. उन्होंने नवाब इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी से शादी की. भारत और इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेल चुके नवाब इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे मंसूर अली ख़ान पटौदी को दुनिया टाइगर पटौदी के नाम से जानती है. वही टाइगर पटौदी, जिनकी बल्लेबाज़ी और कप्तानी की दुनिया आज तक मुरीद है. उन्होंने मशहूर अदाकारा शर्मिला टैगोर से शादी की. अभिनेता सैफ़ अली ख़ान इस दंपती के बेटे हैं.

इस लिहाज से सैफ़ अपनी दादी साजिदा का पोता होने के नाते भोपाल में उनकी संपत्तियों के वारिस माने गए, लेकिन सरकार ने इस मामले में साजिदा के बजाय आबिदा सुल्तान को वारिस मानते हुए उनके पाकिस्तान चले जाने की बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया और इस आधार पर भोपाल में हमीदुल्लाह ख़ान की संपत्तियों के शत्रु संपत्ति होने का दावा किया.

इन आलीशान संपत्तियों की क़ीमत क़रीब 15 हज़ार करोड़ रुपये है. इन संपत्तियों में वो फ़्लैग स्टाफ़ हाउस है, जहां सैफ़ अली ख़ान ने अपना बचपन बिताया. नूर उस सबाह पैलेस नाम का एक आलीशान होटल है. इसके अलावा दार उस सलाम, Bungalow of Habibi, Ahmedabad Palace, and Kohefiza नाम की संपत्तियां भी इस शत्रु संपत्ति में शामिल हैं. 2014 में Custodian of Enemy Property Department ने पटौदी परिवार की भोपाल की संपत्तियों को शत्रु संपत्ति के तौर पर नोटिस दिया. सैफ़ अली ख़ान और उनकी मां शर्मिला टैगोर ने सरकार के कस्टोडियन के इस नोटिस को चुनौती दी.

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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट सैफ़ अली ख़ान की इस याचिका पर 2015 से सुनवाई कर रहा था. इस बीच 2016 में सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें साफ़ कर दिया गया कि वारिस चाहे भारतीय ही क्यों न हो, उसका ऐसी संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं होगा. पिछले साल 13 दिसंबर को सरकार ने भोपाल हाइकोर्ट को जानकारी दी कि शत्रु संपत्ति से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए एक अपीलीय अथॉरिटी बनाई गई है.

बचेगी या जाएगी

इसके बाद हाइकोर्ट के जज जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि दोनों पक्ष 30 दिन के अंदर अपीलीय अथॉरिटी में अपना पक्ष पेश कर सकते हैं. अभी ये साफ़ नहीं है कि तीस दिन के अंदर यानी इस साल 12 जनवरी तक सैफ़ अली ख़ान अपील में गए या नहीं. 15 और 16 जनवरी की दरम्यानी रात अपने घर में हुए हमले में सैफ़ घायल हो गए. अब काफ़ी ठीक हैं. उन्होंने अपील की या नहीं, ये जानकारी आनी बाकी है. 

इस बीच 12 जनवरी की मीयाद गुज़र जाने के कारण पटौदी परिवार की इस संपत्ति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या अपनी दादी के मार्फ़त मिल रही 15 हज़ार करोड़ की ये विरासत  शत्रु संपत्ति होने के नाते सैफ़ अली ख़ान के हाथ से छिन जाएगी. आख़िर शत्रु संपत्ति क़ानून में ऐसा है क्या कि सैफ़ के हाथ से दादी की संपत्ति छिन सकती है. इस क़ानून को समझते हैं कि ये कैसे बना और बदलता गया... 

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दरअसल 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1968 में संसद ने ये क़ानून बनाया. इसका मक़सद था ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं की चल-अचल संपत्तियों का नियमन करना यानी regulate करना जिन्हें शत्रु प्रजा (enemy subjects) या शत्रु फर्म (enemy firm) माना गया. ये व्यक्ति या संस्थाएं, 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के कारण शत्रु देश कहे गए पाकिस्तान और चीन चले गए थे. उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति यानी Enemy Property माना गया. 

इन सभी संपत्तियों को 1962 के Defence of India Rules के तहत सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया और इन्हें गृह मंत्रालय के तहत एक विभाग Custodian of Enemy Property for India (CEPI) यानी शत्रु संपत्ति संरक्षक के हवाले कर दिया गया. 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ताशकंद समझौते में ऐसी संपत्तियों को एक दूसरे को सौंपने पर विचार किया गया, लेकिन पाकिस्तान ने 1971 में एकतरफ़ा अपने यहां मौजूद ऐसी संपत्तियों को ठिकाने लगा दिया या बेच दिया, लेकिन भारत ने Enemy Property Act के तहत इन संपत्तियों को बनाए रखा.

तो Enemy Property Act भारत सरकार को अधिकार देता है कि वो तमाम राज्यों में शत्रु संपत्ति घोषित की गई संपत्तियों को अपने अधिकार में ले और उनका मैनेजमेंट करे ताकि उनका इस्तेमाल देश के हितों के ख़िलाफ़ न हो पाए, लेकिन इस क़ानून को पाकिस्तान में बस चुके लोगों के ऐसे वारिसों जो भारतीय नागरिक हैं, उन्होंने लगातार चुनौती दी और संपत्ति का वारिस होने का दावा किया.

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इसी के मद्देनज़र सरकार ने 2017 में इस क़ानून में संशोधन किया और इसे और सख़्त बना दिया. इसके तहत enemy subject” और “enemy firm की परिभाषाओं को व्यापक किया गया. इनमें शत्रु प्रजा या शत्रु फर्म के क़ानूनी वारिस को भी शामिल कर लिया गया चाहे वो भारत का नागरिक हो या किसी ग़ैर शत्रु देश का नागरिक... इसका मतलब था कि संपत्ति छोड़कर पाकिस्तान चले गए किसी व्यक्ति का वारिस अगर भारतीय भी हो तो भी वो उस संपत्ति का हक़दार नहीं होगा. 

यानी 2017 के संशोधन ने ये साफ़ कर दिया कि शत्रु संपत्ति हर हाल में सरकार के कब्ज़े में ही रहेगी, चाहे शत्रु प्रजा या शत्रु फर्म निधन के कारण न रहे, विलुप्त हो जाए या उस फर्म का कारोबार बंद हो जाए... इस संशोधन का मक़सद था ऐसी सभी संपत्तियों के वारिस होने के दावों को खारिज कर देना... उन संपत्तियों को सरकार के कब्ज़े में रखना. 

हालांकि, इस क़ानून का इस आधार पर विरोध होता रहा कि ये निजी संपत्ति के अधिकारों का हनन है, जबकि शत्रु संपत्ति क़ानून के समर्थक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसे ज़रूरी मानते हैं. शत्रु संपत्ति क़ानून को चुनौती देने से जुड़े कई मामले समय समय पर देश की अदालतों के सामने आते रहे हैं.

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इनमें से एक मशहूर केस है 2005 का राजा महमूदाबाद से जुड़ा केस, जिसे केंद्र सरकार बनाम राजा मोहम्मद आमिर मोहम्मद ख़ान केस नाम से जाना जाता है. दरअसल, महमूदाबाद के राजा की उत्तर प्रदेश में अरबों की संपत्ति थी. लखनऊ के हज़रतगंज, सीतापुर और उत्तराखंड के नैनीताल में उनकी बड़ी जायदाद थी. लखनऊ के पॉश हज़रतगंज इलाके का बड़ा हिस्सा उनकी ही ज़मीन पर बसा है. यहां का बटलर पैलेस, हलवासिया मार्केट सब उनकी ही संपत्ति रहे. महमूदाबाद का किला भी उनकी विरासत में था, लेकिन 1947 के विभाजन के बाद महमूदाबाद के राजा 1957 में पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली. हालांकि उनकी पत्नी और बेटा भारत में ही रहे, भारत के नागरिक बने रहे, लेकिन 1968 में जब शत्रु संपत्ति क़ानून बना तो महमूदाबाद के राजा की संपत्तियों को सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया. महमूदाबाद के राजा के निधन के बाद उनके बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद ख़ान ने पिता की संपत्तियों पर दावा किया और उन्हें शत्रु संपत्ति घोषित करने को क़ानूनी चुनौती दी. 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फ़ैसला किया और कहा कि बेटा भारतीय नागरिक है, इसलिए वो अपने पिता की संपत्ति का हक़दार है. इसलिए इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि उसका हक़दार वारिस भारत का नागरिक है.

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद देश भर में ऐसे कई नए दावे सामने आ गए. पाकिस्तान जा चुके कई लोगों की संपत्तियों के लिए उनके भारत स्थित रिश्तेदारों ने दावे करने शुरू कर दिए. इसके बाद सरकार के सामने इन संपत्तियों का रख रखाव चुनौती बनने लगा. इसी को रोकने के लिए 2010 में भारत सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया. हालांकि इसे क़ानून बनाने से जुड़ा 2010 का विधेयक पास नहीं हो सका.

इसके बाद 2016 में मोदी सरकार फिर एक अध्यादेश लेकर आई, जो 2017 में The Enemy Property (Amendment and Validation) Act के तौर पर क़ानून बन गया. इस क़ानून के तहत अदालतों के उन सभी पुराने फ़ैसलों को खारिज कर दिया गया, जिनके तहत अदालतों ने शत्रु संपत्ति को लौटाने के आदेश दिए थे. क़ानून ने ये साफ़ किया कि वारिस की नागरिकता चाहे जो हो, शत्रु संपत्ति कस्टोडियन यानी सरकार के पास ही रहेगी.

क्या होगा इन संपत्तियों का

इसके बाद 2018 में शत्रु संपत्ति के डिस्पोज़ल यानी उसे निपटाने या बिक्री से जुड़े दिशा निर्देश जारी किए गए. इसमें सरकार के पास मौजूद ऐसी संपत्तियों की बिक्री की प्रक्रिया तय की गई. शत्रु संपत्तियों की एक बड़ी लिस्ट और उनकी क़ीमतें केंद्र सरकार को सौंपी गई. डीएम की अध्यक्षता में कमेटियों ने सर्किल रेट और अन्य पहलुओं के आधार पर इन संपत्तियों की क़ीमतें तय कीं. इसके बाद इन्हें बेचा जाए या ट्रांसफ़र किया जाए या फिर मौजूदा स्थिति में बहाल रखा जाए इसका सुझाव देने के लिए वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की एक कमेटी बनी, जिसे The Enemy Property Disposal Committee कहा गया. इसके तहत खाली संपत्तियों को सबसे बड़ी बोली लगाने वालों को बेचा जा सकता है या किसी संपत्ति पर अगर कोई रह रहा है तो उसी व्यक्ति को वो संपत्ति कमेटी द्वारा निर्धारित क़ीमत पर ख़रीदने का प्रस्ताव दिया जा सकता है. चल संपत्तियां जैसे शेयर वगैरह सार्वजनिक नीलामी, टेंडर या अन्य तरीकों से बेचे जा सकते हैं. बिक्री से मिला पैसा भारत सरकार के Consolidated Fund of India में जमा होगा. 

भारत में शत्रु संपत्ति कही गई जायदाद सरकार के ही हाथ में रहेगी, लेकिन पाकिस्तान में क्या हो रहा है... पाकिस्तान से भी भारत में लाखों लोग आए.उनकी संपत्ति का क्या हाल है...

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2019 में पाकिस्तान की जियो न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक कराची, लाहौर, इस्लामाबाद जैसे कई इलाकों में ऐसी हज़ारों संपत्तियां थीं, जिन्हें छोड़कर लोग भारत आए. इनमें से अधिकतर हिंदू थे. इनमें लोगों के मकान, हवेलियां, कारोबार, खेती की ज़मीन सब कुछ थे... पाकिस्तान की सरकार ने भी इन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया और 1970 में इनकी देखरेख के लिए Enemy Properties Cell (EPC) बनाया. जियो न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 95% संपत्तियों पर पाकिस्तान के प्रभावशाली लोगों ने ग़ैर क़ानूनी तरीके से कब्ज़ा कर लिया है. रिपोर्ट के मुताबिक इसमें लाखों एकड़ ज़मीन शामिल है, हज़ारों प्लॉट, इमारतें शामिल हैं... कई जगहों पर तो पुरानी इमारतों को मिट्टी में मिलाकर उनमें नई इमारतें बना ली गई हैं. पाकिस्तान के तत्कालीन संचार मंत्री मुराद सईद ने माना था कि उनकी सरकार अवैध कब्ज़ा करने वालों से संपत्तियां वापस लेने में नाकाम रही है. 

जिन्ना और मुशरर्फ की जायदाद

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उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले में एक गांव है कोटना बंगार गांव. इस गांव की 13 बीघा ज़मीन परवेज़ मुशर्रफ़ के परिवार की है. पिछले साल 12 सितंबर को खेती की इस ज़मीन पर एक नोटिस लग गया. नोटिस के मुताबिक इस ज़मीन को ई ऑक्शन यानी इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के ज़रिए बेचने का निर्देश दिया गया था. आपको बता दें कि परवेज़ मुशर्रफ़ का जन्म आज़ादी से पहले 1943 में दिल्ली के दरियागंज इलाके में हुआ था और उनके घर को नहर वाली हवेली कहा जाता था. 2001 मे भारत दौरे पर आए मुशर्रफ़ अपने बचपन के इस घर भी गए थे. वैसे एक दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मुंबई में मालाबार हिल्स की संपत्ति जिन्ना हाउस को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति नहीं माना. जुलाई 2018 में गृह मंत्रालय में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि जिन्ना हाउस शत्रु संपत्ति क़ानून 1968 के तहत नहीं आता. सरकार के मुताबिक Administration of Evacuee Property Act, 1950 के तहत ये evacuee property'  है. यानी ऐसे व्यक्ति की संपत्ति जो विभाजन से पहले के भारत में कहीं रह रहा था और सांप्रदायिक तनावों की वजह से तब देश छोड़कर चला गया. इसलिए ये भारत सरकार की संपत्ति है. उधर पाकिस्तान सरकार मुंबई के जिन्ना हाउस को अपनी संपत्ति बताते हुए उसे भारत से वापस दिए जाने की मांग करती रही है.

भारत में कितनी शत्रु संपत्तियां

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  • भारत में ऐसी क़रीब 12,611 संपत्तियां हैं, जिन्हें शत्रु संपत्तियां कहा जाता है... जिनकी कुल क़ीमत लगभग एक लाख करोड़ रुपये है. 
  • इनमें सबसे ज़्यादा 6,041 शत्रु संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं, जिनमें से अकेले लखनऊ में 361 संपत्तियां हैं. 
  • दूसरे स्थान पर सबसे ज़्यादा 4,354 पश्चिम बंगाल में हैं.
  • चीनी नागरिकता ले चुके लोगों की 126 संपत्तियों में से सबसे अधिक 57 मेघालय में हैं.
  • 29 पश्चिम बंगाल में और 7 संपत्तियां असम में हैं. 


 



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अनंत सिंह से क्या है सोनू-मोनू गैंग की दुश्मनी, जानिए बिहार में कितने डॉन और उनकी पूरी कुंडली

फिल्मों में तो हर किसी ने गैंग्स के बारे में देखा ही होगा. वेबसीरिज पर भी कई गैंग्स पर कहानियां बनीं हैं.  मगर बिहार के गैंग कुछ अलग किस्म के होते हैं. यहां अब भी कई गैंग्स काम करते हैं. कुछ अब पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं तो कुछ आज भी खुलेआम. यहां जानिए बिहार के सभी डॉन के बारे में, मगर पहले मोकामा में गैंगवार की कहानी जान लीजिए. बिहार की राजधानी पटना के ही एक जिले का ब्लॉक है मोकामा. पटना से यही कोई अस्सी किलोमीटर दूर. गैंग्स ऑफ मोकामा के कई किरदारों में दो अहम किरदार हैं. एक अनंत सिंह और दूसरे सोनू-मोनू.  सोनू और मोनू सगे भाई हैं. ये अनंत सिंह से सीधे भिड़ने के बाद चर्चा में आ गए हैं.

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अनंत सिंह इस इलाके के पुराने बाहुबली हैं और पूर्व विधायक भी. सोनू-मोनू भी एक समय अनंत सिंह के काफी करीबी हुआ करते थे. एक पुरानी तस्वीर भी सामने आ गई है, जिसमें सोनू और मोनू अनंत सिंह के साथ दिख रहे हैं.  अनंत सिंह और सोनू-मोनू गैंग, दोनों ही इस इलाक़े के बड़े कारोबार में अपना दबदबा रखते हैं. ख़ास तौर पर बाढ़ में चल रहे NTPC पॉवर प्रोजेक्ट में. बुधवार का मामला संपत्ति विवाद से जुड़ा हुआ है... सोनू मोनू ने गांव के ही एक परिवार के घर में ताला जड़ दिया..कहा जा रहा है कि मसला पैसे की लेनदेन से जुड़ा हुआ है. कहा जा रहा है कि जब पीड़ित व्यक्ति अपनी गुहार ले कर अनंत सिंह के पास पहुंचा, तो अनंत सिंह दल बल के साथ गांव में पहुंच गए.

क्या हुआ...

बुधवार रात को मोकामा के नौरंग जलालपुर गांव में गोलियों की तड़तड़ाहट सुनी गई. इसका वीडियो भी वायरल हो गया है. वीडियो किसी मकान की छत से बनाया गया है. दूर गली में एक सफेद गाड़ी खड़ी है.  अचानक गोलियां चलने लगती हैं और एक के बाद एक ऐसे चलती हैं कि रुकने का नाम ही नहीं लेतीं. जब गोली चली तो गांव में अफरातफरी मच गई...लोग इधर उधर भागने लगे. कहा जा रहा है पूरे 70 राउंड गोलियां चलीं.  थोड़ी ही देर में पता चला कि गोलीबारी पूर्व विधायक अनंत सिंह और सोनू-मोनू गैंग के बीच हुई है. इसी के साथ नौरंगा जलालपुर गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया.

3 केस दर्ज

60 से 70 राउंड की फायरिंग हुई...ऐसा बताया जा रहा है कि मोकामा के उस गांव में करीब 20 से 25 मिनट तक लगातार गोलियां चलती रहीं...और पुलिस या प्रशासन का कोई दखल कहीं नहीं दिखा. ये सारा कुछ उस पटना जिले के अंदर हुआ, जो बिहार की राजधानी है. जहां राज्य के मुख्यमंत्री बैठते हैं. इस केस में तीन FIR दर्ज की गई हैं. पहली उस आदमी की तरफ से जिसके मकान में ताला बंद कर दिया गया. दूसरी सोनू-मोनू गैंग की तरफ से और तीसरी FIR अनंत सिंह ने दर्ज करवाई है. 

मोकामा, बाढ़, पटना और बिहार के पूरे दियारा इलाके में कभी अनंत सिंह की तूती बोलती थी. छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले अनंत सिंह भूमिहार वोट के कारण एक से ज्यादा राजनीतिक दलों के प्रिय बने रहे. ये वही अनंत सिंह हैं, जिन्होंने चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को चांदी के सिक्कों से तौलवा दिया था.  पहले इस इलाक़े में उनके बड़े भाई दिलीप सिंह का दबदबा हुआ करता था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद अनंत सिंह ने विरासत संभाल ली. 

अनंत-सोनू-मोनू की क्यों दुश्मनी

अनंत सिंह के ऊपर 38 से ज्यादा आपराधिक मामले हैं और हाल में ही एके 47 रखने के मामले में उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी विधायकी चली गई. उनके पास अरबों की घोषित एवं उससे कई गुना ज़्यादे अघोषित सम्पत्ति है.  2020 में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी RJD के टिकट पर मोकामा से विधायक बनीं, लेकिन बाद में उन्होंने JDU को अपना समर्थन दे दिया. अनंत सिंह बाढ़ के NTPC प्रोजेक्ट के बेताज बादशाह माने जाते हैं और कहते हैं कि यहां इनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता.  और यही वो NTPC प्रोजेक्ट है, जिसमें लेबर कान्ट्रैक्ट का काम सोनू और मोनू भी करते हैं. सोनू और मोनू अपराध की दुनिया के पुराने नाम हैं और पिछले 10 वर्षों में दोनों ने खासा दबदबा बनाया है.

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बिहार के अन्य बाहुबली

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नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद इनमें से ्अधिकांश ने डॉन वाला काम सामने से बंद कर दिया है. हालांकि, अब भी इनके नाम की दहशत आम लोगों के दिलों में कायम है. 



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खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे...: महाकुंभ पर चंद्रशेखर आजाद के बयान पर रामभद्राचार्य

महाकुंभ पर नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की ओर से दिए गए बयान पर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने पटलवार किया है. सांसद चंद्रशेखर आजाद ने बृहस्पतिवार को कहा था कि महाकुंभ में वही लोग जाएंगे जिन्होंने पाप किए हैं.

चंद्रशेखर आजाद के बयान पर आध्यात्मिक नेता जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे.

सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि कुंभ मेले में वही लोग जाएंगे जिन्होंने पाप किए हैं. जिन्होंने पाप किए हैं, उन्हें ही जाना चाहिए. लेकिन क्या कोई यह बताता है कि कोई पाप कब करता है?

हालांकि, बाद में चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि हमारी पार्टी का स्टैंड स्पष्ट है. हम कर्म में भरोसा करते हैं. जिस पार्टी का एजेंडा धार्मिक है, उनको परेशानी होती है तो हो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं तो सदगुरु रविदास जी महाराज को मानता हूं, "मन चंगा तो कटोती में गंगा, मैं क्यों जाऊं मथुरा-काशी, मैं बेगमपुरा का वासी". मेरा मन साफ सुथरा है तो मुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं है. मेरा मन इस देश के प्रति, इस देश के लोगों के प्रति, गरीबों के प्रति हर व्यक्ति के लिए और हर व्यक्ति के सम्मान के लिए है और उनकी परेशानी को हल करने के लिए है. बाकि जिसे जो सोचना है, कहना वो कहें. मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं अपनी बात पर अठिग हूं.
 



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Wednesday, 22 January 2025

ट्रंप का आदेश : तालिबान के खिलाफ US का साथ देने वाले हजारों अफगान शरणार्थियों का भविष्य भी अंधेरे में

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शरणार्थी कार्यक्रम को निलंबित करने का कार्यकारी आदेश जारी किया है. उनके इस कदम ने पाकिस्तान में रहने वाले हजारों अफगानों के भाग्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम के तहत अफगानिस्तान से भागकर पाकिस्तान में रह रहे 25,000 से अधिक अफगान नागरिकों को अंततः अमेरिका में बसाया जाना था. ये वे लोग थे जो तालिबान शासित अफगानिस्तान से भागकर पाकिस्तान में आए थे और वर्षों से अमेरिका में पुनर्वास का इंतजार कर रहे थे.

क्या था पूरा मामला?

पाकिस्तान सरकार और बाइडेन प्रशासन के बीच हुए समझौते के अनुसार, दोनों देशों के बीच यह सहमति बनी थी कि 25,000 से अधिक अफगानों - को बाद में अमेरिका में बसाया जाएगा. इनमें से अधिकांश ने अगस्त 2021 में तालिबान के काबुल की सत्ता पर कब्जे से पहले अमेरिकी सेना और उसके ठेकेदारों के साथ काम किया था

इस्लामाबाद को शुरू में उम्मीद थी कि यह समझौता अफगान नागरिकों के देश में अस्थायी प्रवास के लिए होगा. हालांकि, पिछले साढ़े तीन वर्षों से इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है.

वरिष्ठ रणनीतिक विश्लेषक कामरान यूसुफ ने कहा, "बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया था कि विशेष अप्रवासी वीजा (एसआईवी) और अमेरिकी शरणार्थी प्रवेश कार्यक्रम (यूएसआरएपी) जैसी पहलों के माध्यम से अफगानों को फिर से बसाया जाएगा. लेकिन अब, ट्रम्प के कार्यकारी आदेश के बाद, पूरी प्रक्रिया बाधित हो गई है."

अमेरिका की प्रतिक्रिया

यह भी बताया गया है कि अमेरिकी सरकार ने अपने परिवारों के साथ अमेरिका में पुनर्वास के लिए कम से कम 1,660 अफगानों के वीजा निलंबित कर दिए गए. एक अधिकारी ने कहा, "यह ट्रंप के अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम को निलंबित करने के आदेश के तुरंत बाद हो रहा है." वाशिंगटन के इस फैसले ने अब पाकिस्तान में इन अफगान नागरिकों के भाग्य को खतरे में डाल दिया है.

सोसाइटी फॉर ह्यूमन राइट्स एंड प्रिजनर्स एड (एसएचएआरपी) के अध्यक्ष सैयद लियाकत बनोरी ने कहा, "इन दुर्भाग्यपूर्ण अफगानों को अब कई समस्याओं और गंभीर मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है. वे पाकिस्तान में हैं, एक ऐसा देश जो अवैध अफगानों को उनके देश वापस भेज रहा है. अफगानिस्तान में, इन लोगों को गिरफ्तार किए जाने और मारे जाने का खतरा है क्योंकि अफगान तालिबान उन सभी लोगों के खिलाफ है जिन्होंने अगस्त 2021 से पहले अमेरिकी सेना के साथ काम किया था."

पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने भी नवीनतम घटनाक्रम पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. एक अधिकारी ने कहा, "हमें पता था कि राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यभार संभालने के बाद यह शरणार्थी कार्यक्रम जांच के दायरे में आ सकता है, लेकिन नए प्रशासन ने जिस तरह से इस पर कार्रवाई की है, वह आश्चर्यजनक है."



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जलगांव ट्रेन हादसा : बच सकती थी 13 लोगों की जान? क्या घुमावदार पटरियों बनीं हादसे की वजह

कर्नाटक एक्सप्रेस की दृश्यता प्रथम दृष्टया घुमावदार पटरियों के कारण प्रभावित हुई, जिसकी चपेट में आने से महाराष्ट्र के जलगांव जिले में बुधवार शाम कम से कम 12 यात्रियों की मौत हो गई. अधिकारियों ने बताया कि जलगांव जिले में एक ट्रेन में आग की अफवाह के बाद पटरी पर उतरे कुछ यात्री विपरीत दिशा से आ रही दूसरी ट्रेन की चपेट में आ गए. इस हादसे में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई.

रेलवे अधिकारियों ने बताया कि दोनों रेलगाड़ियों के चालकों ने दिशानिर्देश (प्रोटोकॉल) का पालन किया और दुर्घटना को टालने की पूरी कोशिश की . मध्य रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पुष्पक एक्सप्रेस के चालक ने नियम के अनुसार ‘फ्लैशर लाइट' चालू कर दी थी, जब ट्रेन मुंबई से करीब 400 किलोमीटर दूर माहेजी और परधाडे स्टेशनों के बीच रुकी. कर्नाटक एक्सप्रेस के चालक ने पुष्पक एक्सप्रेस के ‘फ्लैशर लाइट सिग्नल' को देखने के बाद ब्रेक लगाए.

उन्होंने प्रारंभिक जानकारी का हवाला देते हुए कहा, ‘‘हालांकि, पटरियों के घुमावदार होने के कारण ट्रेन (कर्नाटक एक्सप्रेस) की दृश्यता और इसके ब्रेक लगने की दूरी प्रभावित हुई.'' रेलवे अधिकारियों के अनुसार, इस खंड पर ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार से चलती हैं.

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सीआरएस (सेंट्रल सर्किल) मनोज अरोड़ा ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि वह बृहस्पतिवार की सुबह मुंबई से 400 किलोमीटर दूर पचोरा के निकट परधाडे और माहेजी रेलवे स्टेशनों के बीच दुर्घटना स्थल पर पहुंचेंगे.

अरोड़ा ने कहा कि यात्रियों और अन्य प्रत्यक्षदर्शियों के बयान दर्ज किए जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘‘हम यात्रियों और अन्य प्रत्यक्षदर्शियों को आमंत्रित करेंगे. वे दुर्घटना के बारे में अपना बयान दे सकते हैं.''

मध्य रेलवे के भुसावल डिवीजन के एक रेलवे अधिकारी ने बताया कि सीआरएस दुर्घटना में शामिल रेलगाड़ियों के चालक दल के सदस्यों से भी बात करेंगे.

उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव जिले में बुधवार शाम एक ट्रेन में आग की अफवाह के बाद पटरी पर उतरे कुछ यात्री पास की पटरी पर विपरीत दिशा से आ रही दूसरी ट्रेन की चपेट में आ गए. इस हादसे में कम से कम 12 यात्रियों की मौत हो गई जबकि 15 अन्य घायल हो गये. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.



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Tuesday, 21 January 2025

Explainer: डोनाल्‍ड ट्रंप के वो फैसले जिन्‍होंने मचाई हलचल, जानिए भारत सहित दुनिया को कैसे करेंगे प्रभावित

अमेरिका में फिर एक बार ट्रंप सरकार आ गई है. रिपब्लिकन डोनाल्‍ड ट्रंप चुनाव में शानदार जीत हासिल कर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बने हैं. शपथ लेने से पहले ही वो अमेरिका के आने वाले दिनों का खाका खींच चुके थे और शपथ लेने के फौरन बाद उन्होंने उस खाके में अपनी पसंद के रंग भी भर दिए. शपथ लेने के बाद से वो बाइडेन सरकार की 78 नीतियों को रद्द कर चुके हैं. कई नए फैसलों के लिए एग्‍जीक्‍यूटिव ऑर्डर जारी कर चुके हैं और कई पाइपलाइन में हैं. ट्रंप दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हैं और उनके हर फ़ैसले का असर दुनिया भर में होता है. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में आज ऐसे ही कुछ फैसलों पर विस्तार से बात जो दुनिया और भारत को काफ़ी प्रभावित करने वाले हैं. 

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अमेरिका में अवैध आप्रवासियों की शामत

अवैध आप्रवासियों को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की सख्‍ती किसी से छुपी नहीं है. उन्हें लगता है कि अमेरिका की मेहनत का पैसा अवैध आप्रवासियों को पालने में लग रहा है. अमेरिका की सीमाओं से होने वाली मानव तस्करी को ख़त्म करने की वो ठान चुके थे और सत्ता में आते ही उन्होंने सबसे शुरुआती फ़ैसलों में इसी पर अमल किया. अपने पहले भाषण में सबसे पहले मुद्दे के तौर पर उन्होंने इसी का ज़िक्र किया और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए अमेरिका की दक्षिणी सीमाओं पर इमरजेंसी लगा दी.

शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपने पहले संबोधन में कहा, "सबसे पहले मैं अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर राष्ट्रीय इमरजेंसी का एलान करता हूं. हर ग़ैर क़ानूनी प्रवेश तुरंत रोका जाएगा. हम लाखों आपराधिक विदेशियों को वापस उस जगह भेजने की प्रक्रिया शुरू करेंगे जहां से वो आए थे. मैं अपनी 'रिमेन इन मेक्सिको' पॉलिसी बहाल करूंगा. मैं गिरफ़्तार कर छोड़ देने की प्रक्रिया ख़त्म करूंगा. मैं दक्षिणी सीमाओं पर सेना को भेजूंगा ताकि वहां से हमारे देश पर ख़तरनाक आक्रमण को पलटा जा सके.  

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मेक्सिको अमेरिका के दक्षिण में है और दोनों देशों की सीमाएं आपस में लगती हैं. इसलिए अमेरिका में सबसे ज़्यादा आप्रवासी भी मेक्सिको के रास्ते ही आते हैं और मेक्सिको से ही आते हैं. अमेरिका में लगभग हर चौथा आप्रवासी मेक्सिको का है. 2022 में मेक्सिको से आए एक करोड़ छह लाख आप्रवासी अमेरिका में थे. इनमें से कई वैध तौर पर अमेरिका में रहते हैं और कई अवैध तौर पर अपनी ज़िंदगी बेहतर करने का सपना लिए अमेरिका में घुसते हैं. उन्हें अमेरिका की सीमा में प्रवेश दिलाने के लिए कई संगठित गिरोह भी काम करते हैं. डोनल्ड ट्रंप अवैध आप्रवासियों को अमेरिका के संसाधनों पर बोझ मानते रहे हैं. डोनल्ड ट्रंप के फ़ैसले का तुरंत असर ये हुआ कि जो बाइडेन सरकार में शरण मांगने की प्रक्रिया से जुड़ा ऐप ही बंद कर दिया गया. इसके तहत 30 हज़ार एपाइंटमेंट लिए गए थे. ट्रंप के सलाहकार स्टीफ़न मिलर ने कहा कि दरवाज़े बंद हो गए हैं. अमेरिका में घुसने की इच्छा रखने वाले अवैध विदेशियों को अब वापस चले जाना चाहिए.

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इसी के साथ डोनाल्‍ड ट्रंप ने मेक्सिको में अवैध नशे से जुड़े संगठित गिरोहों को भी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. डोनाल्‍ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही जो एक और बड़ा फ़ैसला लिया है वो बर्थराइट सिटिज़नशिप यानी जन्मसिद्ध नागरिकता को निशाने पर लेता है. 

भारतीय-अमेरिकियों का भी प्रभावित होना तय

अवैध आप्रवासियों पर नकेल कसने के इरादे से ट्रंप ने ये आदेश भी जारी किया है. हालांकि इसका असर उन आप्रवासियों पर भी पड़ना तय है जो अमेरिका में वैध तरीके से रह रहे हैं. जैसे लाखों भारतीय-अमेरिकी भी इससे प्रभावित होंगे जिनमें से कई लोग सालों और दशकों से अमेरिका में नागरिकता की पहचान ग्रीन कार्ड का इंतज़ार कर रहे हैं. दरअसल बात ये है कि अभी अमेरिका में पैदा हुए हर बच्चे को स्वत: अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है. ट्रंप और उनके सलाहकारों का मानना है कि अवैध आप्रवासियों ने अमेरिका के इस क़ानून का काफ़ी दुरुपयोग किया है. इसीलिए ट्रंप के एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर के निशाने पर अमेरिका के संविधान का 14वां संशोधन है.

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ये संशोधन कहता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मे या प्राकृतिक रूप से बसे सभी व्यक्तियों को अमेरिका और उस राज्य का नागरिक माना जाएगा जहां वो रहते हों. 

अमेरिका के संविधान में ये संशोधन 1868 में कई अन्यायों को ख़त्म करने के लिए किया गया था जो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के 1857 के एक फ़ैसले के बाद तेज़ हुए. उस फ़ैसले से काले गुलामों के बच्चों को नागरिकता पर रोक लग गई थी, लेकिन 1868 के क़ानून से ये अन्याय ख़त्म हुआ. 

1898 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने इसी क़ानून के तहत एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया. चीन के एक आप्रवासी दंपति के सैन फ्रांसिस्को में जन्मे बेटे को नागरिकता प्रदान कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग़ैर नागरिक दंपती के अमेरिकी ज़मीन पर पैदा हुए बच्चों को अमेरिकी नागरिक माना जाएगा.  

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14वें संशोधन पर क्‍या कहते हैं ट्रंप

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा चौदहवें संशोधन की ये व्याख्या आज भी क़ायम है जिससे ट्रंप और उनके समर्थक सहमत नहीं हैं. ट्रंप का आदेश इस संशोधन की फिर से समीक्षा की कोशिश है. 

ट्रंप ने अपने आदेश में कहा है कि 14वें संशोधन का ये मतलब कभी नहीं था कि अमेरिका में पैदा होने वाले हर व्यक्ति को नागरिकता दे दी जाए. ट्रंप का ज़ोर इस बात पर है कि अमेरिका में बिना दस्तावेज़ रह रहे दंपती के अमेरिका में पैदा हुए बच्चों को स्वत: नागरिकता नहीं दी जाएगी. ट्रंप के आदेश से ये सुनिश्चित होगा कि अमेरिका मे पैदा हुए वो बच्चे स्वत: वहां के नागरिक नहीं माने जाएंगे जिनके कम से कम माता या फिर पिता में से कोई एक अमेरिका का क़ानूनी नागरिक न हो यानी माता-पिता में से किसी एक का अमेरिकी नागरिक होना ज़रूरी होगा तभी बच्चे को स्वत: नागरिक माना जाएगा. 

हालांकि आलोचकों की दलील है कि इस कदम से अमेरिका के कमज़ोर समुदाय और भी हाशिए पर चले जाएंगे और आप्रवासियों के परिवारों में अनिश्चितता बढ़ जाएगी. इस नीति के नतीजे दूरगामी होंगे जिसका असर स्कूलों से लेकर नौकरी करने की जगहों और समुदायों के अंदर दिखेगा. ट्रंप का आदेश जारी होने के 30 दिन बाद इस नीति में बदलाव अमल में आएगा. हालांकि इस आदेश को अदालतों में चुनौती मिलनी तय है. इस नीति का एक बड़ा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो बर्थ ट्यूरिज्‍म यानी पर्यटन के दौरान जन्म को अमेरिका में अपने बच्चों की नागरिकता पाने का तरीका मानते हैं. ये भी तथ्य है कि अमेरिका में कई देशों के प्रवासी समुदायों के बीच ये काफी पसंदीदा तरीका रहा है, लेकिन ट्रंप सरकार की नीतियां इस चलन को खत्म करने की कोशिश हैं.

अमेरिका के सेंसस ब्यूरो के मुताबिक वहां इस समय क़रीब 50 लाख भारतीय अमेरिकी हैं, जो अमेरिका की जनसंख्या का 1.47 फीसदी हैं. इनमें से सिर्फ़ 34 फीसदी अमेरिका में पैदा हुए हैं और बाकी दो तिहाई आप्रवासी हैं. अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां H1-B visa के आधार पर काम कर रहे हैं. इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी. 

अमेरिका की सिविल लिबर्टीज़ यूनियन (ACLU) ने ट्रंप के इस एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर चिंता जताई है और कहा है कि 14वें संशोधन में बर्थराइट सिटिजनशिप को लेकर भाषा बिलकुल स्पष्ट रही है. ACLU को डर है कि इस आदेश के बाद अमेरिका से बडे़ पैमाने पर लोगों को वापस उनके देश भेजने का क्रम शुरू न हो जाए. इससे परिवार भी बंटेंगे और मानवीय अधिकारों का हनन भी होगा.

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पेरिस समझौते के भी खिलाफ ट्रंप

एक तरफ़ जब दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में शुमार हो चुका है, जब हर साल दुनिया पहले से ज़्यादा गर्म होती जा रही है. हर साल दुनिया के औसत तापमान का रिकॉर्ड टूट रहा है. पेरिस समझौते में तय की गई डेढ़ डिग्री तापमान की सीमा दरकती जा रही है तो पेरिस समझौते को ही खारिज करने की बात आसानी से समझ में नहीं आती,  लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि इसकी परवाह नहीं है. 
 
उन्होंने सत्ता संभालते ही अपने एक आदेश से अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकाल दिया, जिसे क़रीब 200 देशों ने मिलकर तय किया था. ट्रंप अपने पहले दौर में भी ऐसा फ़ैसला ले चुके थे जिसे चार साल बाद जो बाइडेन ने पलट दिया था. अपने पहले भाषण में ट्रंप ने पेरिस समझौते का ज़िक्र तो नहीं किया लेकिन साफ़ कर दिया था कि वो ऐसी ऊर्जा नीतियों को पलट देंगे जिन्हें आबोहवा के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन जिनकी वजह से अमेरिकी की ऊर्जा ज़रूरतों पर उलटा असर पड़ा है. 

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "अमेरिका फिर विनिर्माण में अग्रणी देश बनेगा. हमारे पास वो है जो विनिर्माण में लगे किसी और देश के पास कभी नहीं होगा. धरती में सबसे ज़्यादा तेल और गैस हमारे पास है. हम उसे इस्तेमाल करेंगे. हम दाम कम करेंगे. अपने सामरिक रिज़र्व फिर भरेंगे. हम अमेरिका की ऊर्जा पूरी दुनिया में भेजेंगे. हम फिर अमीर देश बनेंगे. हमारे पैरों के नीचे तरल सोना इसमें हमारी मदद करेगा."

हालांकि पारंपरिक ईंधन के धड़ल्ले से इस्तेमाल का डोनाल्‍ड ट्रंप का फैसला क्लाइमेट चेंज से लड़ने की दुनिया की कोशिशों के लिए बड़ा ख़तरा होने जा रहा है. 

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2015 के पेरिस समझौते के लिए संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट समिट के तहत दुनिया के 196 देश पेरिस में जुटे थे और उन्होंने वैश्विक तापमान को 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध जिसे पूर्व औद्योगिक युग कहा गया उसके औसत तापमान से डेढ़ डिग्री तक ही सीमित रखने के लिए कदम उठाने पर समझौता किया था. इसके तहत हर देश को ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए ज़िम्मेदार कार्बन उत्सर्जन की अपनी-अपनी सीमाएं तय करनी थीं. 
 
अपने पहले दौर में पेरिस समझौते से पीछे हटने के बाद बाइडेन सरकार ने उस फ़ैसले को पलटा और दिसंबर 2024 में एक नया महत्वाकांक्षी लक्ष्य अपने लिये तय किया. अमेरिका ने कहा कि वो 2035 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 2005 के मुक़ाबला 66% कम कर देगा, लेकिन एक महीने में ही ट्रंप ने इस दावे से अमेरिका को अलग कर लिया है. 

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क्‍यों चिंता बढ़ा रहा ट्रंप का फैसला?

ट्रंप के फ़ैसले के बाद पेरिस समझौते के तहत 2030 तक दुनिया में कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करना तो संभव नहीं ही होगा उलटा लक्ष्यों से दूर रहने का अंतर बहुत बड़ा हो जाएगा. दुनिया में इस समय चीन के बाद अमेरिका सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है जो आबोहवा को गर्म बनाती हैं, लेकिन ट्रंप अमेरिका में औद्योगीकरण और निर्माण को बढ़ावा देने के तहत न केवल मौजूदा तेल, गैस उत्पादन को बढ़ावा देना चाहते हैं बल्कि तेल, गैस के नए कुओं को भी खोलने का रास्ता साफ़ करने जा रहे हैं. पेरिस समझौते के तहत अमेरिका को कार्बन उत्सर्जन कम करते जाना था लेकिन ट्रंप ने उस समझौते को ही ख़त्म कर दिया, लेकिन अब ट्रंप के अगले चार साल में यानी 2029 तक कार्बन उत्सर्जन कम होने के बजाय बढ़ता ही दिख रहा है जो दुनिया की सेहत के साथ खिलवाड़ से कम नहीं माना जा रहा. एक साल बाद पेरिस समझौते से पीछे हटने का ट्रंप का आदेश अमल में आ जाएगा. 

अब दुनिया में एक चिंता ये भी है कि अमेरिका की देखादेखी दुनिया के कुछ और देश ऐसा ही फ़ैसला न कर लें. 

साल 2024 जाते जाते बता गया है कि जबसे इतिहास में रिकॉर्ड रखे जाने शुरू हुए हैं तब से वो साल सबसे गर्म साल रहा है. जब पेरिस समझौते में तय डेढ़ डिग्री तापमान की सीमा टूट गई. ग्लोबल वॉर्मिंग के इस असर को हर देश महसूस कर रहा है. जिस तरह की अति मौसमी घटनाएं हो रही हैं, कई अतिवृष्टि तो कहीं सूखा, बेमौसमी तूफ़ान. इस सबका आर्थिक, सामाजिक, मानवीय असर बहुत गहरा होने वाला है. दुनिया के कई देशों का तो अस्तित्व ही समुद्र में मिल जाएगा. इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग को नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं. 
 
उम्मीद है कभी कोई अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ये बात समझाने में कामयाब रहेगा. फिलहाल तो ऐसा लग नहीं रहा.

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WHO से बाहर होने का आदेश

डोनाल्ड ट्रंप के कुछ आदेशों में ये भी साफ़ झलकता है कि वो दुनिया की कई बड़ी संस्थाओं को या तो निकम्मा मानते हैं या अमेरिकी हितों के ख़िलाफ़ जो दुनिया में शांति, व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गईं. इनमें से एक है 7 अप्रैल 1948 को बना WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन.   

ट्रंप ने अपने एक एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर से अमेरिका को निर्देश दिया है कि वो WHO से बाहर हो जाए. अपने आदेश में ट्रंप ने कहा कि अमेरिका द्वारा WHO को भविष्य में किसी भी तरह के फंड, सहयोग या संसाधन भेजने पर रोक लगा दी जाए. दरअसल, ट्रंप कोविड महामारी से निपटने के मुद्दे पर WHO की हर मंच पर आलोचना करते रहे हैं. ट्रंप ने शपथ लेने के कुछ घंटे बाद कहा कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था को चीन के मुक़ाबले ज़्यादा पैसा देता रहा है लेकिन इसने हमें ठगा है. 
 
दरअसल दुनिया का हर वैश्विक मंच सभी देशों के अंशदान पर काम करता है. अमीर देश ज़्यादा पैसा देते रहे हैं. ये तथ्य है कि जेनेवा स्थित WHO के काम के लिए अमेरिका सबसे ज़्यादा वित्तीय सहयोग देता रहा है, जो दुनिया के विकसित देशों का कर्तव्य भी है, जिन्होंने विकासशील देशों की क़ीमत पर संसाधनों का सबसे ज़्यादा दोहन किया और प्रदूषण फैलाया. 

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2022 के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका ने WHO को सबसे अधिक 109 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का सहयोग दिया. दूसरे स्थान पर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन रही जिसने 57 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का अंशदान दिया. हालांकि ट्रंप को लगता है कि अमेरिका को अपने सहयोग की तुलना में WHO का सहयोग कम मिलता है. इसलिए उन्होंने उससे बाहर होने का फ़ैसला लिया, लेकिन WHO ने ट्रंप के इस फ़ैसले पर अफ़सोस जताया है. 
 
जेनेवा में WHO के प्रवक्ता ने कहा WHO अमेरिकी लोगों समेत पूरी दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य को बचाने और सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है. हमें उम्मीद है कि अमेरिका अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करेगा. हम दुनिया भर के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य के हित में अमेरिका और WHO के बीच भागीदारी बनाए रखने के लिए एक सकारात्मक बातचीत की उम्मीद कर रहे हैं. 

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WHO के कामकाज पर असर पड़ने की आशंका

हालांकि इस आदेश के बाद भी अमेरिका को WHO से बाहर आने की प्रक्रिया में एक साल लगेगा. अमेरिका के पीछे हटने से WHO के काम पर काफ़ी असर पड़ने की आशंका है और दुनिया भर में उसकी स्वास्थ्य योजनाओं के बिगड़ने की आशंका है.  डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार ऐसा किया है. अपने पहले दौर में भी उन्होंने WHO से पीछे हटने का आदेश जारी किया था जिसे बाद में बाइडेन प्रशासन ने पलट दिया था. उधर चीन का कहना है कि वो WHO को सहयोग जारी रखेगा. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि WHO को मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है, कमज़ोर नहीं. 
 
ट्रंप के इस आदेश का अमेरिका में ही काफ़ी विरोध हो रहा है. बराक ओबामा सरकार में रहे एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी टॉम फ्रीडन के मुताबिक WHO से पीछे हटने से उसे ज़्यादा प्रभावी नहीं बनाया जा सकता. इस फ़ैसले से अमेरिका के प्रभाव पर असर पड़ेगा, भयानक महामारी का ख़तरा बढ़ जाएगा और ये फ़ैसला हम सभी को कम सुरक्षित कर रहा है.  

जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ लॉ के प्रोफ़ेसर लॉरेंस गोस्टिन के मुताबिक, दवाओं को पहले हासिल करने के बजाय अब हम कतार में पीछे रह जाएंगे. WHO से हटना अमेरिका की सुरक्षा और नायाब कोशिशों में हमारी बढ़त को एक गहरा घाव साबित होगा. 

अमेरिका WHO से ऐसे समय हट रहा है जब वहां बर्ड फ़्लू H5N1 के महामारी के तौर पर फैलने का डर बना हुआ है. बर्ड फ़्लू से वहां कई लोग संक्रमित हैं और एक व्यक्ति की मौत तक हो चुकी है. 

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LGBTQ+ लोगों के लिए बड़ा झटका

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आते ही एक और आदेश दिया जो दुनिया में अपनी लैंगिक पहचान हासिल करने की कोशिश में लगे करोड़ों LGBTQ+ लोगों के लिए बड़े झटके से कम नहीं है. अपने एक अहम आदेश में ये साफ़ कर दिया कि अमेरिका में अब सिर्फ़ दो ही लिंगों को मान्यता होगी. पुरुष और महिला यानी मेल और फीमेल.  इसे लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के बाद पहले संबोधन में कहा कि आज से अमेरिका की ये आधिकारिक नीति होगी कि सिर्फ़ दो ही लिंग होंगे. पुरुष या महिला. 

ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि लिंग कभी बदल नहीं सकते. वो एक ऐसी असलियत हैं जो बुनियादी हैं. व्हाइट हाउस के अधिकारियों के मुताबिक ये आदेश बायोलॉजिकल ट्रुथ यानी जैविक सत्य को बहाल करने के लिए है और लैंगिक विचारधारा के अतिवाद का मुक़ाबला करने के लिए है. 

इस आदेश के साथ ही डोनल्ड ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की उन कोशिशों को पलट दिया है, जिसके तहत वहां लैंगिक पहचान को व्यापक बनाने की कोशिश की जा रही थी और इसे पासपोर्ट पर भी दर्ज किया जा रहा था. हालांकि लैंगिक पहचान को लेकर ट्रंप सरकार के आदेश पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. आलोचकों का कहना है कि ये आदेश सालों से LGBTQ+ लोगों के अधिकारों को हासिल करने की कोशिश में एक बड़ी बाधा बन जाएगा. उनके साथ नए सिरे से भेदभाव शुरू हो जाएगा. ऐसा आदेश LGBTQ+ समुदाय के प्रति लोगों के रुख़ को प्रभावित करेगा. ख़बर ये है कि ट्रंप के इस आदेश के बाद ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ राजनीतिक दलों ने इसी दिशा में अमल की मांग की है. 

कैसा विरोधाभास है कि डोनाल्ड ट्रंप का ये आदेश अमेरिका में मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली महान शख़्सियत मार्टिन लूथर किंग जूनियर डे पर आया. जो सभी अमेरिकी लोगों को बराबर मानने और काले लोगों के अधिकारों के लिए लड़े. अब देखना है कि डोनाल्ड ट्रंप के ताज़ा आदेश अमेरिका में बराबरी को बढ़ावा देंगे या ग़ैर बराबरी को.



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VIDEO : बरनाला में स्कॉर्पियो ने ढाई साल की मासूम को कुचला, मौत; माता-पिता के साथ चर्च गई थी जोया

पंजाब के बरनाला में वाहन की चपेट में आने से एक दो साल की बच्ची की मौत हो गई. पुलिस ने बताया कि वो एक निजी स्कूल प्रबंधक की गाड़ी थी. घटना सोमवार को सेक्रेड हार्ट चर्च में हुई, जो सीसीटीवी कैमरे में भी कैद हो गई. बच्ची जोया उस वक्त परिसर में खेल रही थी. तभी वो कार की चपेट में आ गई. वहीं पीड़ित परिवार ने कहा कि मौत ड्राइवर की लापरवाही से हुई है.

पुलिस ने कहा कि ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया है और विस्तृत जांच की जा रही है.

पत्रकारों से बात करते हुए बच्ची के पिता सूरज कुमार ने कहा कि वो और उनकी पत्नी अनुपमा अपनी बेटी के साथ चर्च गए थे. मेरी बेटी वहां खेल रही थी, लेकिन ड्राइवर ने लापरवाही से उसे कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई. वह मेरी इकलौती संतान थी.

उन्होंने आगे कहा, "वहां का एरिया छोटा था और ड्राइवर तेज़ रफ़्तार में था. वो इतनी कम जगह में ऐसा कैसे कर सकता था? उसे सावधान रहना चाहिए था. जब कार पहली बार उसके ऊपर चढ़ूी, तो उसे कार रोक देनी चाहिए थी. कार नहीं रुकी और पीछे का पहिया भी उसके ऊपर से गुजर गया."

बच्ची के पिता ने आरोप लगाया कि वाहन में सवार लोग, जो स्कूल के कर्मचारी माने जाते हैं, उन्होंने न तो घटना के लिए माफी मांगी और न ही उनकी बेटी को अस्पताल पहुंचाने में मदद की.

सूरज कुमार ने कहा, "क्या ड्राइवर मेरी बच्ची को नहीं देख सका? कार पूरी तरह उसके ऊपर से गुजर गई. मैं न्याय चाहता हूं. मैं इस घटना को दुर्घटना नहीं मान सकता. ड्राइवर और स्कूल स्टाफ मेरे पास माफी मांगने भी नहीं आए. किसने उसे नौकरी पर रखा था? अब मैं किसे खाना खिलाऊंगा? अब मैं किसके साथ खेलूंगा? अब तक कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई?"

वहीं पुलिस उपाधीक्षक सतबीर सिंह ने बताया कि आरोपी चालक जसविंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है. वह हरियाणा के सिरसा का रहने वाला है. वाहन भी जब्त कर लिया गया है. जांच चल रही है.

दुर्घटना पर स्कूल की ओर से तत्काल कोई बयान नहीं आया है.



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Monday, 20 January 2025

पीएम मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति बनने पर दी बधाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने डोनाल्‍ड ट्रंप (Donald Trump) को अमेरिका का 47वां राष्‍ट्रपति बनने पर बधाई दी है. पीएम मोदी ने ट्रंप को अपना प्रिय मित्र बताया और कहा कि मैं एक बार फिर साथ मिलकर काम करने, दोनों देशों को लाभ पहुंचाने और दुनिया के लिए बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए तत्पर हूं.डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. वह 2017 में देश के 45वें राष्ट्रपति बने थे, लेकिन 2020 में हुए चुनाव में हार गए थे. 

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा, "मेरे प्रिय मित्र राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में ऐतिहासिक शपथ ग्रहण पर बधाई! मैं एक बार फिर साथ मिलकर काम करने, दोनों देशों को लाभ पहुंचाने और दुनिया के लिए बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए तत्पर हूं. आने वाले सफल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं!"

शपथ ग्रहण में पहुंचे जयशंकर

ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और बड़े नेता मौजूद रहे. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत का प्रतिनिधित्व किया.

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने कैपिटल रोटुंडा में उन्हें शपथ दिलाई. इससे पहले, उपराष्ट्रपति चुने गए जे.डी. वैंस ने भी पद की शपथ ली. आम तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति कैपिटल की सीढ़ियों पर शपथ लेते हैं, लेकिन वहां पड़ रही कड़ाके की ठंड के मद्देनजर शपथ ग्रहण समारोह, प्रार्थना और भाषण का आयोजन इस बार रोटुंडा में किया गया.

ये दिग्‍गज भी रहे मौजूद

शपथ ग्रहण समारोह में निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके परिवार के सदस्यों के अलावा, निवर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, उनकी पत्नी मिशेल ओबामा तथा उनके परिवार के सदस्य, पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनकी पत्नी हिलेरी क्लिटंन, पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश जूनियर और उनकी पत्नी लारा बुश भी शामिल हुईं. देश के सभी वरिष्ठ राजनेताओं के अलावा, शीर्ष सैन्य और खुफिया विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहे.

संयुक्त कांग्रेशनल समिति ऑन इनॉगरल सेरेमनीज (जेसीसीआईसी) ने पिछले महीने 60वें इनॉगरल सेरेमनी के लिए थीम के रूप में "हमारा स्थायी लोकतंत्र : एक संवैधानिक वादा" की घोषणा की थी.



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Sunday, 19 January 2025

NDTV Exclusive Interview : आवारा, मवाली, महा-मवाली... जूना अखाड़े के महंत ने 'IIT बाबा' को क्या-क्या कह डाला

जूना अखाड़े के महंत करणपुरी महाराज ने NDTV इंडिया को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अभय सिंह को निकालने की वजह बताई. जूना अखाड़े के सचिव महंत डॉ. करणपुरी महाराज ने कहा है कि IIT बाबा कोई साधु नहीं था. IIT वाला बाबा अखाड़े का नहीं था. वो मवाली था. जगह- जगह रुकता और खाता था. कहीं भी टीवी पर कुछ बोलता था.वो बहुत गलत व्यक्ति था, उसे मार कर निकाल दिया.वो अखाड़े को बदनाम कर रहा था.

उन्होंने आगे बताया कि IIT बाबा यहां घूमते हुए आया था, वो किसी के माध्यम से अखाड़े में नहीं आया था. साथ ही वो किसी का शिष्य भी नहीं था. वो गलत कह रहा था किसी का सुना हुआ नाम ले रहा था.सोमेश्वर पूरी को मरे 20 साल हो गए. वो चेला कैसे हो सकता है.वह कब बन गया अखाड़े का इसकी कोई जानकारी नहीं है. वो किसी का नाम सुनकर, इधर-उधर पड़ा रहता था,कहीं इनके टेंट तो कहीं उनके टेंट और खा पीककर भाग जाता था.उन्होंने आगे कहा कि वो बहुत दिन यहां नहीं था, इधर-उधर घूमता था. जब सबको पता चला, उसे आने नहीं दिया गया अपने पास बैठने नहीं दिया गया. भोजन नहीं दिया गया भगा दिया गया. उसे कई दिन पहले ही भगा दिया गया. उससे कोई व्यवहार नहीं रखता ना कोई उसे अपने पास बैठाता.

उन्होंने कहा कि IIT बाबा की इन हरकतों की वजह से अखाड़े में भयंकर आक्रोश है. अखाड़ा उसका ही सम्मान करता है जिसके पास अखाड़े की पहचान है. इस शख्स ने कई दिनों तक लोगों से अपनी सच्चाई छिपाकर रखी है. जो पूरी तरह से गलत है. 

वह मवाली,आवारा आदमी था

वह अखाड़े का नहीं था. वह मवाली,आवारा आदमी था.वह कोई साधु नहीं था.यूं ही मवाली था. जगह जगह रुकता खाता था. टीवी पर कहीं भी कुछ भी कह देता था. वह बहुत गलत व्यक्ति था. उसे अखाड़े से मारकर भगा दिया हम लोगों ने. वह अखाड़े को बदनाम कर रहा था.वह घूमते हुए अखाड़े में आया था. किसी के माध्यम से नहीं आया था. न किसी का चेला था.

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में जूना अखाड़ा IIT बाबा के नाम से वायरल अभय सिंह पर कुपित है. ऊपर जूना अखाड़े के महंत करणपुरी महाराज के शब्द बता रहे हैं कि अखाड़ा किस कदर IIT बाबा पर आगबबूला है. जूना अखाड़े ने अभय सिंह पर अखाड़े को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए उन्हें निकाल दिया.  महंत के मुताबिक अभय जूना अखाड़े में आते-जाते थे, लेकिन उनकी हरकतों को देखते हुए हमने उन्हें मारकर भगा दिया.

कौन हैं महाकुंभ में आए IIT बाबा?

इंजीनियर बाबा का असली नाम अभय सिंह है. उनके इंस्टाग्राम हैंडल के मुताबिक, वह मूलरूप से हरियाणा के रहने वाले हैं. अभय सिंह ने कई मीडिया इंटरव्यू में दावा किया है कि उन्होंने IIT बॉम्बे से इंजीनियरिंग की है. उनका सब्जेक्ट एयरोस्पेस था.

पढ़ाई खत्म होने के बाद मिला था लाखों का पैकेज

मीडिया इंटरव्यू में अभय सिंह ने दावा किया कि बॉम्बे IIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो कैंपेस इंटरव्यू में बैठे थे. इसमें उनका सिलेक्शन हो गया था. उन्हें एक कंपनी से लाखों का पैकेज ऑफर हुआ था. उन्होंने कुछ दिन नौकरी की. 

ट्रैवल फोटोग्राफी के लिए छोड़ दी नौकरी

अभय सिंह के मुताबिक, उन्हें स्कूल के दिनों से फोटोग्राफी का शौक था. खासतौर पर वो ट्रैवेल फोटोग्राफी एन्जॉय किया करते थे. वो इससे रिलेटेड कोई कोर्स करना चाहते थे. इसलिए एक दिन इंजीनियरिंग छोड़ दी. फिर ट्रैवल फोटोग्राफी का कोर्स किया. इसी दौरान जिंदगी को लेकर उनकी फिलॉसफी बदल गई. उन्होंने कुछ समय के लिए अपना एक कोचिंग सेंटर भी खोला. यहां फिजिक्स पढ़ाया करते थे. लेकिन, उनका मन नहीं लगता था. उनका मन आध्यात्म में लगने लगा था. 

इंजीनियरिंग से इतर पढ़ते थे फिलॉसफी

इंजीनियर बाबा ने बताया, "इंजीनियरिंग करते हुए मैं फिलॉसफी से कनेक्ट होने लगा. कोर्स से इतर जाकर मैं दर्शनशास्त्र की किताबें पढ़ता था. जिंदगी का मतलब समझने के लिए मैंने नवउत्तरावाद, सुकरात, प्लेटो के आर्टिकल और किताबें पढ़ ली थीं. फिर एक समय आध्यात्म का रास्ता चुन लिया."



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Saturday, 18 January 2025

कहीं टैक्स बचाने के लिए आप भी तो नहीं दे रहे रूम रेंट की फर्जी पर्ची, यह पढ़ लीजिए, फंस जाएंगे?

देश में अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को टैक्‍स के रूप में देना भला किसे पसंद आता है. बहुत से लोग टैक्‍स बचाने के लिए तरह-तरह के जुगाड़ लगाते हैं. कहीं पर राजनीतिक दलों को चंदा देने का झूठा दावा करते हैं तो कहीं पर रूम रेंट की फर्जी पर्ची बनाकर टैक्‍स बचाने का जतन करते हैं, लेकिन यह कोशिश उन्‍हें फंसा भी सकती है. अगर आप भी टैक्‍स बचाने के लिए अवैध तरीके अपना रहे हैं तो आज ही सावधान हो जाइये. यह तरीके आपको काफी महंगे पड़ सकते हैं. इनकम टैक्‍स डिपार्टमेंट की नजर टैक्‍स चुकाने वाले ऐसे लोगों पर हैं, जो अवैध तरीके अपनाते हैं और टैक्‍स का कम भुगतान करते हैं. डिपार्टमेंट ने ऐसे लोगों पर नकेल कसना भी शुरू कर दिया है. 

न्‍यूज 18 की खबर के मुताबिक, दिसंबर 2024 में इनकम टैक्‍स डिपार्टमेंट ने 90 हजार करदाताओं को पकड़ा है, जिन्‍होंने फर्जी दान और निवेश दिखाकर अवैध रूप से टैक्‍स बचाने का प्रयास किया था. 

राजनीतिक दलों को दान के झूठे दावे 

इनकम टैक्‍स डिपार्टमेंट की हालिया जांच और सर्वेक्षणों में सामने आया है कि बड़ी संख्या में करदाताओं ने राजनीतिक दलों और धर्मार्थ संगठनों को दान देने के झूठे दावे किए हैं. इस तरह के झूठे दावों के कारण एक बड़ी राशि गलत तरीके से बचा ली गई. अब तक सामने आए मामलों के मुताबिक, गलत तरीके अपनाकर गलत तरीके से बचाई गई राशि 1,070 करोड़ रुपये है. 

लोन और मकान किराये के दावे भी झूठे

इनकम टैक्‍स डिपार्टमेंट की जांच में सामने आया है कि कई लोगों ने टैक्‍स बचाने के लिए अलग-अलग दावे किए. कुछ लोगों ने एज्‍युकेशन लोन पर ब्‍याज के भुगतान का दावा किया, जबकि यह लोन लिया ही नहीं गया. वहीं कुछ लोगों ने अपनी संपत्ति होने के बावजूद मकान किराया भते के दावे किए. धर्माथ दान और टैक्‍स फ्री निवेश के नाम पर भी धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं. 

इन प्रावधानों का उठा रहे फायदा 

टैक्‍स बचाने के लिए हर कोई प्रयास करता है, लेकिन कुछ लोगों ने इसके लिए लिए अवैध तरीके तक अपनाने में कोई गुरेज नहीं किया. ऐसे लोगों ने सबसे ज्‍यादा जिन प्रावधानों का फायदा उठाकर अवैध रूप से टैक्‍स बचाया है, उनमें आयकर अधिनियम की धारा 80सी (निवेश छूट), 80डी (स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम), 80ई (एज्‍युकेशन लोन), 80जी (दान), और 80जीजीबी और 80जीजीसी (राजनीतिक दलों और चुनावी ट्रस्टों को दान) जैसे प्रावधान शामिल हैं. 

ऐसे मामलों से निपटने के लिए क्‍या? 

इस तरह के मामलों को लेकर डिपार्टमेंट ने कड़े उपायों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया अपना रहा है. झूठे दावे करने वाले कर्मचारियों और नियोक्ताओं को कानूनी र्कावाही से बचाने के लिए अपने टैक्‍स रिटर्न में बदलाव करने की सलाह दी गई है. 

इस तरह के मामलों को लेकर अधिकारियों ने अनुमान जताया है कि धोखाधड़ी वाले दावों के मामलों की वास्‍तविक संख्‍या सामने आए आंकड़ों की तुलना में तीन गुना अधिक हो सकती है.

डिपार्टमेंट ने उन कंपनियों की जांच को तेज कर दी है, जहां पर पूर्व में भी इस तरह के मामले पाए गए हैं. साथ ही नियोक्ताओं से आग्रह किया है कि वे अपने कर्मचारियों को इसे लेकर जानकारी दे.  

इनकम टैक्‍स डिपार्टमेंट ने टैक्‍स चोरी करने वालों को कड़ी चेतावनी दी है और कहा है कि इस तरह की अनियमितताओं के गंभीर परिणाम होंगे. साा ही डिपार्टमेंट ने सभी नागरिकों से किसी भी प्रकार की कर चोरी से बचने के साथ ही सटीक और सत्यापित दावे दाखिल करने की अपील की है. 



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केंद्र ने केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के पास खनन परियोजना को किया खारिज

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के वन्यजीव बोर्ड ने उत्तराखंड के चमोली जिले में केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के बेहद करीब सोप स्टोन खनन शुरू करने के उत्तराखंड खनन विभाग के प्रस्ताव को सीधे तौर पर खारिज कर दिया है. केदारनाथ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के बेहद नजदीक सोप स्टोन खनन के लिए भारत सरकार को लगभग एक साल पहले प्रस्ताव भेजा गया था, जिस पर लगातार कई बार बैठकें हुईं.

प्रस्ताव में सेंचुरी से 2.1 किलोमीटर दूर नॉन-फॉरेस्ट लैंड पर खनन करने की योजना थी. उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के आसपास इको-सेंसेटिव जोन तय नहीं किया है, लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, अगर राज्य सरकार किसी सेंचुरी या रिजर्व फॉरेस्ट के आसपास क्षेत्र तय नहीं करती है, तो राष्ट्रीय उद्यान के पास लगभग 10 किलोमीटर तक डिफॉल्ट क्षेत्र इको-सेंसेटिव जोन माना जाता है. 

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सोप स्टोन (खड़िया) खनन बड़े पैमाने पर होता आया है, लेकिन हाल ही में नैनीताल हाईकोर्ट ने खड़िया खनन पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. इसकी वजह खड़िया खनन से होने वाले नुकसान और क्षेत्र के स्थानीय ग्रामीणों को होने वाले नुकसान को बताया गया है. कोर्ट ने बागेश्वर के तहसील में अवैध रूप से हो रहे खनन पर अपना फैसला सुनाया था. इसके अलावा, वहां के लोग लगातार इस बात को उठा रहे थे कि अवैध रूप से खड़िया खनन किया जा रहा है, जिससे उनके घरों, खेतों और आसपास के पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने खनन पर रोक लगाई और निर्देश जारी किए हैं कि खड़िया खनन से हुए नुकसान की एक रिपोर्ट बनाई जाए. इसके साथ ही, अवैध खनन के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.

एक तरफ जहां कोर्ट ने बागेश्वर में खड़िया खनन से होने वाले नुकसान के कारण रोक लगाई है, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड खनन विभाग केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, जो कि एक अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है, में सोप स्टोन खनन करने का प्रस्ताव तैयार कर के भेज रहा है. जबकि 2013 की केदारनाथ आपदा, भूकंप के दृष्टिकोण से संवेदनशीलता, वन्यजीवों के लिए प्रोटेक्टेड एरिया जैसी कई घटनाएं यह दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है.



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Friday, 17 January 2025

भारत की सबसे सस्ती स्पोर्ट्स कार, देखिए जरा हार जाएंगे दिल

भारत मोबिलिटी ग्लोबल एक्सपो 2025 में MG मोटर्स ने अपनी नई इलेक्ट्रिक कार साइबरस्टर को भारतीय बाजार में लॉन्च की है. इस EV में कई उन्नत फीचर्स शामिल हैं, हालांकि कंपनी ने इसकी कीमत अभी तक घोषित नहीं की है. MG मोटर्स ने बताया कि इसकी प्री-रिजर्वेशन आज से शुरू हो रही है, जबकि बुकिंग मार्च में शुरू होगी और डिलीवरी अप्रैल से शुरू हो जाएगी.

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नई MG साइबरस्टर एक परफॉर्मेंस-ओरिएंटेड इलेक्ट्रिक कार है, जो स्पोर्ट्स कार के डिजाइन के साथ पेश की गई है. यह 2-सीटर कन्वर्टिबल कार पहली इलेक्ट्रिक कार है, जिसमें सिजर डोर डिजाइन दिया गया है. कार में आगे की ओर LED हेडलाइट्स और 19-इंच के अलॉय व्हील्स शामिल हैं. पीछे की ओर कनेक्टेड LED लाइट्स और एरो शेप्ड LED टेललाइट्स का भी आकर्षक डिजाइन है. रिपोर्ट के मुताबिक ये सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक स्पोर्ट्स कार होगी. 

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नई साइबरस्टर के इंटीरियर्स में स्पोर्ट्स कार की फिनिशिंग दी गई है, जो स्पोर्टी रेड/ब्लैक कलर थीम में उपलब्ध है. इस कार की प्रमुख हाइलाइट्स में पैनोरमिक ट्रिनिटी डिस्प्ले (दो स्क्रीन वाला ड्राइवर क्लस्टर और एक टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम), डैशबोर्ड-माउंटेड ड्राइवर गियर सिलेक्टर और बकेट स्टाइल स्पोर्टी ड्राइवर और को-ड्राइवर सीटें शामिल हैं.

साइबरस्टर में 77 kWh बैटरी पैक यूनिट दी गई है, जिसे 509 bhp और 725 Nm का पीक टॉर्क जनरेट करने वाले शक्तिशाली मोटर्स के साथ जोड़ा गया है. इसके अलावा बेहतर एयरोडायनामिक्स और प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए इसमें डुअल मोटर सेटअप भी शामिल है. यह बैटरी पैक एक बार चार्ज करने पर लगभग 580 किमी की रेंज प्रदान करने का दावा करता है.



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Thursday, 16 January 2025

अखिल भारतीय स्तर पर एक समान नीति... : भारत में टाइगर रिजर्वों के प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट

उत्तराखंड में कॉर्बेट बाघ अभयारण्य से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह अखिल भारतीय स्तर पर एक समान नीति चाहते हैं. ⁠जहां तक बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन का सवाल है, हम पूरे देश में एक समान नीति चाहते हैं. नीति में बाघ अभयारण्यों के अंदर वाहनों की आवाजाही के पहलू को भी शामिल किया जाना चाहिए.

जस्टिस गवई ने हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उस घटना पर स्वतः संज्ञान लिए जाने का उल्लेख किया, जिसमें पर्यटकों को ले जा रहे सफारी वाहनों ने नए साल की पूर्व संध्या पर महाराष्ट्र के उमरेड-पौनी-करहांडला अभयारण्य में एक बाघिन और उसके शावकों की आवाजाही में बाधा डाली थी. ⁠इस मामले में एमिकस क्यूरी के तौर पर अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ वकील के परमेश्वर ने कॉर्बेट बाघ अभयारण्य में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के संबंध में सीबीआई की जांच का हवाला दिया.

पीठ ने कहा कि उसने इस मामले में सीबीआई की रिपोर्ट देखी है. उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने पीठ को उन अधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई विभागीय जांच की के बारे में जानकारी दी. वकील ने कहा कि 17 मामलों में विभागीय जांच पूरी हो चुकी है और कुछ में लंबित है.

जब राज्य के वकील ने सीबीआई जांच का हवाला दिया तो पीठ ने कहा कि आप सीबीआई से संबंधित नहीं हैं. कॉर्बेट बाघ अभयारण्य से संबंधित मामले की सुनवाई 19 मार्च के लिए स्थगित करते हुए पीठ ने कहा कि हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि 19 मार्च तक हमें पता चलता है कि आप कार्रवाई करने में गंभीर नहीं हैं तो आपके मुख्य सचिव को यहां बुलाया जाएगा.

पीठ ने यह भी जानना चाहा कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है और उनमें से कितनों को दंडित किया गया है. राज्य के वकील ने कहा कि वह इस संबंध में एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करेंगे. साथ ही पीठ ने सीबीआई को सुनवाई की अगली तारीख से पहले मामले में की गई आगे की जांच पर  रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है.



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अदाणी ग्रुप की कॉपर इकाई इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन में हुई शामिल

अदाणी ग्रुप की कंपनी कच्छ कॉपर लिमिटेड वाशिंगटन डीसी मुख्यालय वाले इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन (आईसीए) में शामिल हो गई है. यह जानकारी अदाणी ग्रुप ने गुरुवार को दी. आईसीए एक गैर-लाभकारी व्यापार संघ है, जो दुनिया के आधे कॉपर के उत्पादन का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके छह महाद्वीपों में 33 सदस्य हैं.

गुजरात के मुंद्रा में स्थित कच्छ कॉपर, अदाणी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी अदाणी एंटरप्राइजेज की सब्सिडियरी कंपनी है. अदाणी एंटरप्राइजेज पहले चरण में 0.5 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) की प्रारंभिक क्षमता वाला कॉपर स्मेल्टर स्थापित करने के लिए लगभग 1.2 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है.

कच्छ कॉपर की अत्याधुनिक सुविधा कॉपर कैथोड, रॉड और अन्य उत्पाद भी बनाएगी, जो कॉपर उत्पादन में भारत के आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देगी.

आईसीए में शामिल होने पर कच्छ कॉपर के मैनेजिंग डायरेक्टर, डॉ. विनय प्रकाश ने कहा, "भारत आने वाले दशकों में कॉपर और उसके उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने की ओर अग्रसर है. हमारा मानना ​​है कि आईसीए में कच्छ कॉपर की सदस्यता हमें स्थिरता पहलों में सक्रिय रूप से योगदान करने और कॉपर के क्षेत्र में नए अनुप्रयोगों और उत्पादों को विकसित करने की अनुमति देगी. हम इस आवश्यक मेटल के लिए जरूरी वैल्यू चेन को बढ़ाने के लिए ग्लोबल कॉपर कम्युनिटी के साथ सहयोग करने के लिए तत्पर हैं, जो नेट जीरो ट्रांसमिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है."

आईसीए के प्रेसिडेंट और सीईओ जुआन इग्नासियो डियाज ने कहा, "हमें अपनी कम्युनिटी में अदाणी मेटल्स कच्छ कॉपर लिमिटेड का स्वागत करते हुए खुशी हो रही है. टिकाऊ और इनोवेटिव कॉपर के उत्पादन को आगे बढ़ाने में उनके प्रयास ग्लोबल डीकार्बोनाइजेशन के लिए आवश्यक टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में कॉपर की आवश्यक भूमिका को बढ़ावा देने, संरक्षित करने और बचाव करने के हमारे सामूहिक मिशन को मजबूत करते हैं. उनकी उपस्थिति के साथ, हम उन क्षेत्रों में कॉपर के विकास का समर्थन करने के लिए विशेष रूप से उत्साहित हैं, जहां इसके प्रमुख अनुप्रयोगों का विस्तार हो रहा है."

अदाणी ग्रुप ने पिछले वित्त वर्ष में कच्छ कॉपर लिमिटेड की अपनी ग्रीनफील्ड कॉपर रिफाइनरी की पहली इकाई का परिचालन शुरू कर दिया है. अदाणी ग्रुप का लक्ष्य इस दशक के अंत तक इसे एक लोकेशन पर मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी कॉपर स्मेल्टर बनाना है. इसकी क्षमता एक एमएमटीपीए की होगी. इससे भारत को अपनी मेटल की आवश्यकताओं में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी.



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